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17:39, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
जीवन की अँजुरी में
साँसों के फूल लिए,
कभी जिए हर सिंगार
तो कभी बबूल जिए।
मेजों के गुलदस्ते
सेजों की शुभ रातें,
हर कहीं सुगन्ध और-
रंग की वही बातें,
कभी कण्ठहार कभी-
दुखों के दुकूल हुए।
पँखुरी पर शबनम-से
लिखे हुए नाम पर
लहरों के संग दूर
अर्घ्य के प्रणाम गए
धार में बहे कभी
कभी कगार-कूल छुए।
जुड़े हुए हाथ और
झुकी हुई पलकों में,
धड़कन तक आकर के
रुकी हुई अलकों में,
खुशबू देकर अनन्त-
में, उड़ती धूल हुए।