भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हवाएँ / जेन्नी शबनम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जेन्नी शबनम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>हव...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:31, 8 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

हवाएँ
कटार है
अँगार है
तूफ़ान है
हवाएँ
जलती है
सुलगती है
उबलती है
हवाएँ
लहू से लथपथ
लाल और काले के भेद
से अनभिज्ञ
बवालों से घिरी है
हवाएँ
खुद से जिरह करती
शनै-शनै सिसकती है
हवाएँ
अपने ज़ख़्मी पाँव को
घसीटते हुए
दर-ब-दर भटक रही है
हवाएँ
अपने लिए बैसाखी भी नहीं चाहती
अब वो जान चुकी है
हवाओं की अपनी मर्ज़ी नहीं होती
जमाने का रुख
उसकी दिशा तय करता है !

(फरवरी 28, 2013)