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13:57, 10 जनवरी 2014 का अवतरण
मुबारक़ हो नया साल
रचनाकार: नागार्जुन
फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
खुसुर-पुसुर करते हैं, खुश हैं बनिया-बकाल
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...
थामेंगे डालरी कमन्द !
बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकन्द !