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"जब भी मिलता है कोई शख्स अकेला मुझको / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

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12:41, 25 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

जब भी मिलता है कोर्इ शख़्स अकेला मुझको
ज़र्रा-ज़र्रा1 नज़र आता है सुनहरा मुझको

तुम उजालों में न दे पाये कभी साथ मेरा
रास आया न कभी आह अंधेरा मुझको

फ़ुरकते-यार2 में आया है वो सैलाबे-हवस3
आइना आइना हैरत से है तकता मुझको

संग बख़्शी है जिसे शक्ले-हसीं4 आज़र5 ने
बुतपरस्ती6 का सबक़7 हंस के है देता मुझको

है फ़सद हैफ़8 जो खुशियों का समुंदर था कभी
आज वह शख़्स लगा दर्द का सहरा मुझको

हो न हो प्यार के जज़्बे का असर हो ये 'कंवल’
आज वह बुत नज़र आता है खुदा सा मुझको

1. कण-कण 2. सखा का वियोग 3. लिप्सा-लोभ का बाढ़ 4. सुन्दर मुखड़ा
5. एक संग तराश 6. मूर्तिपूजा 7. शिक्षा 8. पश्चाताप।