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"कोई नहीं है / उत्‍तमराव क्षीरसागर" के अवतरणों में अंतर

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00:12, 31 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

बंद दरवाज़ा
लौटा देता है वापस ,
राह अपनी

थकान, दुनी
हो जाती है जाने से
आने की

रास्‍ता
पहचानने लगा है

हर मोड़ कुछ
सीधा हो जाता है
सहानुभूति‍ में

कभी भूल से साँकल
खटखटाने पर
झूम उठता है ताला
खि‍लखि‍लाकर बताता हुआ,
कोई नहीं है ।
                                     १९९८ ई०