भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूर्य से भी पार पाना चाहता है / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 +
{{KKVID|v=5ZLjnlfEe3c}}
 
<poem>
 
<poem>
 
सूर्य से भी पार पाना चाहता है
 
सूर्य से भी पार पाना चाहता है

19:12, 4 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

सूर्य से भी पार पाना चाहता है
इक दिया विस्तार पाना चाहता है

देखिए, इस फूल की ज़िद देखिए तो
पत्थरों से प्यार पाना चाहता है

किस क़दर है सुस्त सरकारी मुलाज़िम
रोज़ ही इतवार पाना चाहता है

अम्न की चाहत यहाँ है हर किसी को
हर कोई तलवार पाना चाहता है

इक सपन साकार हो जाए, बहुत है
हर सपन साकार पाना चाहता है

फूलबाई कब, कहाँ, कैसे लुटी थी
ये ख़बर अख़बार पाना चाहता है

मैं तेरी ख़ातिर उपस्थित हो गया हूँ
और क्या उपहार पाना चाहता है

जिसका मिल पाना असम्भव है ‘अकेला’
दिल वही हर बार पाना चाहता है