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"तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसातों में दिल... / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

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20:53, 8 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसातों में दिल की जलन
ढंडी फुहारों से लगती है, तन मन में क्यों और अगन

तुम क्या जानो बरसे हैं जब आवारा बादल 'सावन’
बढ़ जाती है कितनी तुमसे मिलने की तड़पन तरसन

भीग रही है कोर्इ कुंवारी छत परइन बौछारों में
कोर्इ दिवाना प्रीतम के दरशन में है यूं आज मगन

आह मचलने लगते हैं अरमान दिले-आवारा में
आता है जब याद तेरा भीगा भीगा शफ्फ़ाफ़ बदन

तुम हो कहां महबूब मेरे सावन की नशीली रातों में
देख 'कंवल’ बेबस हो कर ढूढ़े हैं तुम्हें दरपन दरपन