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"हर पल सँवरने सजने की फुर्सत नहीं रही / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

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21:42, 8 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

हर पल संवरने सजने की फ़ुरसत नहीं रही
अब मुझको आइने की ज़रूरत नहीं रही

मिलने पे यूँ बिछुड़ने का अहसास हीन था
बिछुड़े तो कभी मिलने की कि़स्मत नहीं रही

आंखों में एडस होने का है खौफ़ इस तरह
अब बेवफ़ाई की कोर्इ सूरत नहीं रही

हम दर्दी की वो धूम है राहत की राह पर
'कोसी’ को कोसने में भी लज़्ज़त नहीं रही

अब मुंतजि़र नहीं हूं मैं खिड़की से धूप का
अच्छा है मेरे सर पे कोर्इ छत नहीं रही

लुत्फ़ो-करम है दौलते-इफ़्लास का यही
महफ़िल में मेरी इज़्ज़तो-शोहरत नहीं रही

उसके बदन की गंध मुझे भागर्इ 'कंवल’
अब खुशबुओं की मंडी की चाहत नहीं रही