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दर्द की रात ढल चली है</div>
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धार</div>
  
 
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रचनाकार: [[फ़ैज़ अहमद फ़ैज़]]
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रचनाकार: [[अरुण कमल]]
 
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बात बस से निकल चली है
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कौन बचा है जिसके आगे
दिल की हालत सँभल चली है
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इन हाथों को नहीं पसारा
  
अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
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यह अनाज जो बदल रक्त में
अब तबीअत बहल चली है
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टहल रहा है तन के कोने-कोने
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यह कमीज़ जो ढाल बनी है
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बारिश सरदी लू में
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सब उधार का, माँगा चाहा
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नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
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सब कर्जे का
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यह शरीर भी उनका बंधक
  
अश्क ख़ूँनाब हो चले हैं
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अपना क्या है इस जीवन में
ग़म की रंगत बदल चली है
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सब तो लिया उधार
 
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सारा लोहा उन लोगों का
लाख पैग़ाम हो गये हैं
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अपनी केवल धार ।
जब सबा इक पल चली है
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जाओ, अब सो रहो सितारो
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दर्द की रात ढल चली है
+
 
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जुनूँ=दीवानगी;
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अश्क=आँसू;
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ख़ूँनाब=लहू के रंग
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14:06, 16 फ़रवरी 2014 का अवतरण

धार

रचनाकार: अरुण कमल

कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा

यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे का
यह शरीर भी उनका बंधक

अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार ।