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धार</div>
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वे किसान की नई बहू की आँखें</div>
  
 
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रचनाकार: [[अरुण कमल]]
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रचनाकार: [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
 
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कौन बचा है जिसके आगे
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नहीं जानती जो अपने को खिली हुई --
इन हाथों को नहीं पसारा
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विश्व-विभव से मिली हुई --
 
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नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को --
यह अनाज जो बदल रक्त में
+
नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
टहल रहा है तन के कोने-कोने
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वे किसान की नई बहू की आँखें
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
+
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें ;
बारिश सरदी लू में
+
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
सब उधार का, माँगा चाहा
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प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
+
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से --
सब कर्जे का
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बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से ।  
यह शरीर भी उनका बंधक
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अपना क्या है इस जीवन में
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सब तो लिया उधार
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सारा लोहा उन लोगों का
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अपनी केवल धार ।  
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12:45, 22 फ़रवरी 2014 का अवतरण

वे किसान की नई बहू की आँखें

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई --
विश्व-विभव से मिली हुई --
नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को --
नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
वे किसान की नई बहू की आँखें
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें ;
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से --
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से ।