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"सौन्दर्यँ दशर्नम् / संस्कृत" के अवतरणों में अंतर

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श्री सीता ~ स्तुति
 
 
 
 
  सुमँगलीम कल्याणीम
 
  सर्वदा सुमधुर भाषिणीम i
 
  वर दायिनीम जगतारिणीम
 
  श्री राम पद अनुरागिणीम ii
 
 
 
  वैदेही जनकतनयाम
 
मृदुस्मिता उध्धारिणीम i
 
  चँद्र ज्योत्सनामयीँ, चँद्राणीम
 
नयन द्वय, भव भय हारिणीम ii
 
 
 
    कुँदेदू सहस्त्र फुल्लाँवारीणीम
 
    श्री राम वामाँगे सुशोभीनीम i
 
    सूर्यवँशम माँ गायत्रीम
 
    राघवेन्द्र धर्म सँस्थापीनीम  ii
 
 
 
    श्री सीता देवी नमोस्तुते !
 
    श्री राम  वल्लभाय नमोनम:i
 
    हे अवध राज्य ~ लक्ष्मी नमोनम:i
 
    हे  सीता देवी त्वँ नमोनम: नमोनम:ii
 
 
 
            लावण्या
 
 
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केवलं कामिनी दर्शनं कामये<br>
 
केवलं कामिनी दर्शनं कामये<br>

07:13, 1 दिसम्बर 2007 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात


वैभवं कामये न धनं कामये
केवलं कामिनी दर्शनं कामये
सृष्टि कार्येण तुष्टोस्म्यहं यद्यपि
चापि सौन्दर्य संवर्धनं कामये।
रेलयाने स्थिता उच्च शयनासने
मुक्त केशांगना अस्त व्यस्तासने
शोभिता तत्र सर्वांग आन्दोलिता
अनवरत यान परिचालनं कामये।
सैव मिलिता सड़क परिवहन वाहने
पंक्ति बद्धाः वयं यात्रि संमर्दने
मम समक्षे स्थिता श्रोणि वक्षोन्नता
अप्रयासांग स्पर्शनं कामये।
सैव दृष्टा मया अद्य नद्यास्तटे
सा जलान्निर्गता भाति क्लेदित पटे
दृशयते यादृशा शाटिकालिंगिता
तादृशम् एव आलिंगनं कामये।
एकदा मध्य नगरे स्थिते उपवने
अर्धकेशामपश्यम् लता मण्डपे
आंग्ल शवानेन सह खेलयन्ती तदा
अहमपि श्वानवत् क्रीडनं कामये।
नित्य पश्याम्यहं हाटके परिभ्रमन्
तां लिपिष्टकाधरोष्ठी कटाक्ष चालयन्
अतिमनोहारिणीं मारुति गामिनीम्
अंग प्रत्यंग आघातनं कामये।
स्कूटी यानेन गच्छति स्वकार्यालयं
अस्ति मार्गे वृहद् गत्यवरोधकम्
दृश्यते कूर्दयन् वक्ष पक्षी द्वयं
पथिषु सर्वत्र अवरोधकम् कामये।