भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रहमतें छोड़ के सर के लिये कलगी ले ली / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem>रहमत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:03, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

रहमतें छोड़ के सर के लिये कलगी ले ली
छोड़ कर मुहरें अरे रे रे इकन्नी ले ली

जिस्म चादर है जिसे उस पे चढ़ाना है हमें
साफ़ करने के लिये दश्त में डुबकी ले ली

माँ के पहलू में जो बेटी ने रखा अपना सर
माँ ने सर चूम के फिर हाथों में कंघी ले ली

उस ने जिस हाथ की जिस उँगली को पहनाई थी रिंग
हम ने उस हाथ की उस उँगली की पुच्ची ले ली

वरना क्या कहते कि कोई भी नहीं अपना यहाँ
यादों में खोये थे सब हमने भी हिचकी ले ली

तंज़ के तौर उसे नाम दिया शह+नाई
उसको अच्छा भी लगा हमने भी चुटकी ले ली

मुद्दआ ये था कि शुरुआत हुई थी कैसे
हम ज़िरह करते रहे उस ने गवाही ले ली

उस की जुल्फों के तले ऊँघती आँखों को मला
और अँगड़ाई ने फिर चाय की चुस्की ले ली

मील दो मील का थोड़ा है मुहब्बत का सफ़र
दूर जाना था ख़यालात की बघ्घी ले ली

जैसे ही नूर का दीदार हुआ आँखों को
जल गईं भुन गईं और पलकों ने झपकी ले ली

हमने ही जीते मुहब्बत के सभी पेच ‘नवीन’
हाँ मगर हाथों में जब आप ने चरखी ले ली