भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परबत कहाँ? राई बराबर भी नहीं / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem>परबत ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:20, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
परबत कहाँ? राई बराबर भी नहीं
लोगों में अब लज्जा नहीं, डर भी नहीं
फ़ीतों से नापे जा रहा हूँ क़ायनात
औक़ात मेरी जबकि तिल भर भी नहीं
सोचा - टटोलूँ तो खिरद के हाथ-पाँव
पर अक़्ल के हिस्से में तो सर भी नहीं
मैं वो नदी हूँ थम गया जिस का बहाव
अब क्या करूँ क़िस्मत में कंकर भी नहीं
क्यूँ चाँद की ख़ातिर ज़मीं को छोड़ दूँ?
इतना दीवाना तो समन्दर भी नहीं
वाँ के वहीं हैं अब भी सारे मसअले
रोटी नहीं, कपड़े नहीं, घर भी नहीं
मालूम है मुझको मिजाज़ अपना ‘नवीन’
बेहतर नहीं है गर तो बदतर भी नहीं