भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दामन छुड़ा के चल दिए / धीरेन्द्र अस्थाना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatGhazal}} <poem>उम्र...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:53, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
उम्र भर का गम उठाने की बात करते थे वो कभी ,
दौर-ए-गम शुरू हुआ नही , दामन छुड़ा के चल दिए !
अक्सर मेरे काँधे पे होता था उनका सर और,
जब जरूरत हुयी उनकी , बातें बना के चल दिए !
कभी मेरा तो कभी गैरों का शिकवा करते वो ,
मेरे हाल की कौन सुने , अपने सुना के चल दिए !