भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाद बिछुड़ने के / धीरेन्द्र अस्थाना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatKavita}} <poem>बाद ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:02, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !
था मै नाचीज़ उनके लिए पर,
मेरे लिए वो नसीब थे !
गैरो में गिनता था खुद को ,
पाया तो वो बड़े अज़ीज़ थे !
थी जो दिले - जागीर पास मेरे ,
लूटे तो सबसे गरीब थे !
बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !