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"पगड़ी / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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जिन्दगी  भर  वे  पगड़ी  के  साथ  रहे
 
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किसी  मुसीबत  में  पड़ते  तो  दूसरो के  
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किसी  मुसीबत  में  पड़ते  तो  दूसरों के  
 
पाँव  पर  रख  देते  थे  पगड़ी
 
पाँव  पर  रख  देते  थे  पगड़ी
 
उम्र  भर  खेलते  रहे  पगड़ी  का  खेल
 
उम्र  भर  खेलते  रहे  पगड़ी  का  खेल
 
जाते  समय  पिता  ने  सौंपी  थी  यह  पगड़ी
 
जाते  समय  पिता  ने  सौंपी  थी  यह  पगड़ी
और  कहा  था --  यह  जादुई  पगड़ी  तुम्हे हर
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और  कहा  था --  यह  जादुई  पगड़ी  तुम्हें हर
 
मुसीबत  से  बचा  सकती  है
 
मुसीबत  से  बचा  सकती  है
 
पगड़ी  कभी  सिर  पर  कभी  किसी  के  
 
पगड़ी  कभी  सिर  पर  कभी  किसी  के  
 
पाँव  पर  पड़ी  रहती  थी
 
पाँव  पर  पड़ी  रहती  थी
 
वह  सुविधानुसार  बदलती  रहती  थी  जगह
 
वह  सुविधानुसार  बदलती  रहती  थी  जगह
पगडी को  नाव  बना  कर  वे  सीख  गए  है
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पगड़ी को  नाव  बना  कर  वे  सीख  गए  है
 
भवसागर  पार  करने  की  कला  
 
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22:38, 27 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

जिन्दगी भर वे पगड़ी के साथ रहे
किसी मुसीबत में पड़ते तो दूसरों के
पाँव पर रख देते थे पगड़ी
उम्र भर खेलते रहे पगड़ी का खेल
जाते समय पिता ने सौंपी थी यह पगड़ी
और कहा था -- यह जादुई पगड़ी तुम्हें हर
मुसीबत से बचा सकती है
पगड़ी कभी सिर पर कभी किसी के
पाँव पर पड़ी रहती थी
वह सुविधानुसार बदलती रहती थी जगह
पगड़ी को नाव बना कर वे सीख गए है
भवसागर पार करने की कला