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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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कितनी अतृप्ति है...
कितनी अतृप्ति है...<br> कितनी अतृप्ति है जीवन में ?<br>मधु के अगणित प्याले पीकर,<br>कहता जग तृप्त हुआ जीवन,<br>मुखरित हो पड़ता है सहसा,<br>मादकता से कण-कण प्रतिक्षण,<br>पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ?<br>कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।<br/poem>
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