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"तब किसी की याद आती / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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मैं तुम्हारी तुम हमारे!
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तब किसी की याद आती!
  
नयन में निज नयन भर कर
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पेट का धन्धा खत्म कर
अधर पर सुमधुर अधर धर
+
लौटता हूँ साँझ को घर
साध कर स्वर, साध कर उर
+
बन्द घर पर, बन्द ताले पर थकी जब आँख जाती।
एक दिन तुमने कहा था प्रेम-गंगा के किनारे।
+
तब किसी की याद आती!
मैं तुम्हारी तुम हमारे!
+
  
था कथित उर-प्यार हारा
+
रात गर्मी से झुलसकर
मौन था संसार सारा
+
आँख जब लगती न पलभर
सुन रहा था सरित-जल, सब मुस्कुराते चाँद-तारे।
+
और पंखा डुलडुलाकर बाँह थक-थक शीघ्र जाती।
मैं तुम्हारी तुम हमारे!
+
तब किसी की याद आती!
  
अब कहीं तुम, मैं कहीं हूँ
+
अश्रु-कण मेरे नयन में
अर्थ इसका मैं नहीं हूँ
+
और सूनापन सदन में
शेष हैं वे शब्द, क्षत उर-स्वप्न, दो नयनाश्रु खारे।
+
देख मेरी क्षुद्रता वह जब कि दुनिया मुस्कुराती।
मैं तुम्हारी तुम हमारे!
+
तब किसी की याद आती!
 
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13:05, 7 मार्च 2014 के समय का अवतरण

तब किसी की याद आती!

पेट का धन्धा खत्म कर
लौटता हूँ साँझ को घर
बन्द घर पर, बन्द ताले पर थकी जब आँख जाती।
तब किसी की याद आती!

रात गर्मी से झुलसकर
आँख जब लगती न पलभर
और पंखा डुलडुलाकर बाँह थक-थक शीघ्र जाती।
तब किसी की याद आती!

अश्रु-कण मेरे नयन में
और सूनापन सदन में
देख मेरी क्षुद्रता वह जब कि दुनिया मुस्कुराती।
तब किसी की याद आती!