भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम गए चितचोर / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:12, 11 मार्च 2014 के समय का अवतरण
तुम गए चितचोर!
स्वप्न-सज्जित प्यार मेरा
कल्पना का तार मेरा
एक क्षण में मधुर निष्ठुर तुम गए झकझोर।
तुम गए चितचोर!
हाय! जाना ही तुम्हें था
यों रुलाना ही मुझे था
तुम गए प्रिय! पर गए क्यों नहीं हृदय मरोर।
तुम गए चितचोर!
लुट गया सर्वस्व मेरा
नयन में इतना अँधेरा
घोर निशि में भी चमकती है नयन की कोर।
तुम गए चितचोर!