भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हँसी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

23:10, 17 मार्च 2014 का अवतरण

 जब कि बसना ही तुझे भाता नहीं।

तब किसी की आँख में तू क्यों बसी।

क्या मिला बेबस बना कर और को।

क्यों हँसी भाई तुझे है बेबसीे।

जो कि अपने आप ही फँसते रहे।

क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी।

जो बला लाई दबों पर ही सदा।

तो लबों पर किस लिए आयी हँसी।