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"प्रेमबंधन / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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जो किसी के भी नहीं बाँधो बँधो।
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जो किसी के भी नहीं बाँधे बँधे।
 
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प्रेमबंधदन से गये वे ही कसे।
प्रेमबंधान से गये वे ही कसे।
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तीन लोकों में नहीं जो बस सके।
 
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प्यारवाली आँख में वे ही बसे।।
  
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पत्तियों तक को भला कैसे न तब।
 
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कर बहुत ही प्यार चाहत चूमती।
 
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साँवली सूरत तुम्हारी साँवले।
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जब हमारी आँख में है घूमती।।
 
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हरि भला आँख में रमें कैसे।
 
हरि भला आँख में रमें कैसे।
 
 
जब कि उस में बसा रहा सोना।
 
जब कि उस में बसा रहा सोना।
 
 
क्या खुली आँख औ लगी लौ क्या।
 
क्या खुली आँख औ लगी लौ क्या।
 
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लग गया जब कि आँख का टोना।।
लग गया जब कि आँख का टोना।
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मंदिरों मसजिदों कि गिरजों में।
 
मंदिरों मसजिदों कि गिरजों में।
 
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खोजने हम कहाँ-कहाँ जावें।
खोजने हम कहाँ कहाँ जावें।
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आप फ़ैले हुए जहाँ में हैं।
 
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हम कहाँ तक निगाह फ़ैलावें।।
आप पै+ले हुए जहाँ में हैं।
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जान तेरा सके न चौड़ापन।
 
जान तेरा सके न चौड़ापन।
 
 
क्या करेंगे बिचार हो चौड़े।
 
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है जहाँ पर न दौड़ मन की भी।
 
है जहाँ पर न दौड़ मन की भी।
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वहाँ बिचारी निगाह क्या दौड़े।।
  
वाँ बिचारी निगाह क्या दौड़े।
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भौं सिकोड़ी बके-झके-बहके।
 
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बन बिगड़ लड़-पड़े-अड़े-अकड़े।
भौं सिकोड़ी बके झके; बहके।
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बन बिगड़ लड़ पड़े अड़े अकड़े।
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लोक के नाथ सामने तेरे।
 
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कान हम ने कभी नहीं पकड़े।।
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हो कहाँ पर नहीं झलक जाते।
 
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पर हमें तो दरस हुआ सपना।
 
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कब हुआ सामना नहीं, पर हम।
 
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कर सके सामने न मुँह अपना।।
  
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जो अँधेरा है भरा जी में उसे।
 
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हम अँधेरों में पड़े सोते नहीं।
जो ऍंधोरा है भरा जी में उसे।
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उस जगत की जोत की भी जोत के।
 
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जोतवाले नख अगर होते नहीं।।
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लोक को निज नई कला दिखला।
 
लोक को निज नई कला दिखला।
 
 
पा निराली दमक दमकता है।
 
पा निराली दमक दमकता है।
 
 
दूज का चन्द्रमा नहीं है यह।
 
दूज का चन्द्रमा नहीं है यह।
 
 
पद चमकदार नख चमकता है।
 
पद चमकदार नख चमकता है।
  
 
कर अजब आसमान की रंगत।
 
कर अजब आसमान की रंगत।
 
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ये सितारे न रंग लाते हैं।
सितारे न रंग लाते हैं।
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अनगिनत हाथ-पाँव वाले के।
 
अनगिनत हाथ-पाँव वाले के।
 
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नख जगा जोत जगमगाते हैं॥
नख जगा जोत जगमगाते हैं।
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हैं चमकदार गोलियाँ तारे।
 
हैं चमकदार गोलियाँ तारे।
 
 
औ खिली चाँदनी बिछौना है।
 
औ खिली चाँदनी बिछौना है।
 
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उस बहुत ही बड़े खिलाड़ी के।
उस बहुत ही बड़े खेलाड़ी के।
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हाथ का चन्द्रमा खिलौना है।।
 
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हाथ का चन्द्रमा खेलौना है।
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भेद वह जो कि भेद खो देवे।
 
भेद वह जो कि भेद खो देवे।
 
 
जान पाया न तान कर सूते।
 
जान पाया न तान कर सूते।
 
 
नाथ वह जो सनाथ करता है।
 
नाथ वह जो सनाथ करता है।
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हाथ आया न हाथ के बूते।।
  
हाथ आया न हाथ के बूते।
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सब दिनों पेट पाल-पाल पले।
 
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सब दिनों पेट पाल पाल पले।
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मोहता मोह का रहा मेवा।
 
मोहता मोह का रहा मेवा।
 
 
हैं पके बाल पाप के पीछे।
 
हैं पके बाल पाप के पीछे।
 
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आप के पाँव की न की सेवा॥
आप के पाँव की न की सेवा।
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जो निराले बड़े रसीले हैं।
 
जो निराले बड़े रसीले हैं।
 
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पा सकें फूल फूल-फल वे हम।
पा सकें फूल फूल फल वे हम।
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चाह है यह ललक-ललक देखें।
 
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लाल के लाल-लाल तलवे हम।।
चाह है यह ललक ललक देखें।
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हों भले, हों सब तरह के सुख हमें।
 
हों भले, हों सब तरह के सुख हमें।
 
 
एक भी साँसत न दुख में पड़ सहें।
 
एक भी साँसत न दुख में पड़ सहें।
 
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चाह है, लाली बनी मुँह की रहे।
चाह हैं, लाली बनी मुँह की रहे।
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लाल तलवों से लगी आँखें रहें।  
 
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12:28, 18 मार्च 2014 के समय का अवतरण

जो किसी के भी नहीं बाँधे बँधे।
प्रेमबंधदन से गये वे ही कसे।
तीन लोकों में नहीं जो बस सके।
प्यारवाली आँख में वे ही बसे।।

पत्तियों तक को भला कैसे न तब।
कर बहुत ही प्यार चाहत चूमती।
साँवली सूरत तुम्हारी साँवले।
जब हमारी आँख में है घूमती।।

हरि भला आँख में रमें कैसे।
जब कि उस में बसा रहा सोना।
क्या खुली आँख औ लगी लौ क्या।
लग गया जब कि आँख का टोना।।

मंदिरों मसजिदों कि गिरजों में।
खोजने हम कहाँ-कहाँ जावें।
आप फ़ैले हुए जहाँ में हैं।
हम कहाँ तक निगाह फ़ैलावें।।

जान तेरा सके न चौड़ापन।
क्या करेंगे बिचार हो चौड़े।
है जहाँ पर न दौड़ मन की भी।
वहाँ बिचारी निगाह क्या दौड़े।।

भौं सिकोड़ी बके-झके-बहके।
बन बिगड़ लड़-पड़े-अड़े-अकड़े।
लोक के नाथ सामने तेरे।
कान हम ने कभी नहीं पकड़े।।

हो कहाँ पर नहीं झलक जाते।
पर हमें तो दरस हुआ सपना।
कब हुआ सामना नहीं, पर हम।
कर सके सामने न मुँह अपना।।

जो अँधेरा है भरा जी में उसे।
हम अँधेरों में पड़े सोते नहीं।
उस जगत की जोत की भी जोत के।
जोतवाले नख अगर होते नहीं।।

लोक को निज नई कला दिखला।
पा निराली दमक दमकता है।
दूज का चन्द्रमा नहीं है यह।
पद चमकदार नख चमकता है।

कर अजब आसमान की रंगत।
ये सितारे न रंग लाते हैं।
अनगिनत हाथ-पाँव वाले के।
नख जगा जोत जगमगाते हैं॥

हैं चमकदार गोलियाँ तारे।
औ खिली चाँदनी बिछौना है।
उस बहुत ही बड़े खिलाड़ी के।
हाथ का चन्द्रमा खिलौना है।।

भेद वह जो कि भेद खो देवे।
जान पाया न तान कर सूते।
नाथ वह जो सनाथ करता है।
हाथ आया न हाथ के बूते।।

सब दिनों पेट पाल-पाल पले।
मोहता मोह का रहा मेवा।
हैं पके बाल पाप के पीछे।
आप के पाँव की न की सेवा॥

जो निराले बड़े रसीले हैं।
पा सकें फूल फूल-फल वे हम।
चाह है यह ललक-ललक देखें।
लाल के लाल-लाल तलवे हम।।

हों भले, हों सब तरह के सुख हमें।
एक भी साँसत न दुख में पड़ सहें।
चाह है, लाली बनी मुँह की रहे।
लाल तलवों से लगी आँखें रहें।