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"हकी़क़ते-हुस्न / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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खुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया<br/>
 
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01:41, 2 जून 2008 का अवतरण

खुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया
जहाँ में क्यों ना मुझे तुने लाज़वाल किया।

मिला जवाब के तस्वीरखाना है दुनिया
शबे-दराज़ अदम का फसाना है दुनिया।

है रंगे-तगय्युरसे जब नमूद इसकी
वही हसीन है हक़ीकत ज़वाल है इसकी।

कहीं क़रीब था, ये गुफ्तगू क़मरने सुनी
फ़लकपे आम हुवी, अख्तरे-सहरने सुनी।

सहरने तारेसे सुनकर सुनायी शबनमको
फ़लककी बात बता दी ज़मींके महरमको।

भर आये फूलके आँसू पयामे-शबनमसे
कलीका नन्हासा दिल खून हो गया ग़मसे।

चमनसे रोता हुवा मौसमे-बहार गया
शबाब सैरको आया था सोग़वार गया।