"सुनहली सीख / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सैकड़ों ही कपूत-काया से। | |
− | + | ||
है भली एक सपूत की छाया। | है भली एक सपूत की छाया। | ||
− | |||
हो पड़ी चूर खोपड़ी ने ही। | हो पड़ी चूर खोपड़ी ने ही। | ||
− | |||
अनगिनत बाल पाल क्या पाया। | अनगिनत बाल पाल क्या पाया। | ||
जो भला है और चलता है सँभल। | जो भला है और चलता है सँभल। | ||
− | |||
है भला उस को किसी से कौन डर। | है भला उस को किसी से कौन डर। | ||
− | |||
दैव की टेढ़ी अगर भौंहें न हों। | दैव की टेढ़ी अगर भौंहें न हों। | ||
− | |||
क्या करेंगे लोग टेढ़ी भौंह कर। | क्या करेंगे लोग टेढ़ी भौंह कर। | ||
नेकियाँ मानते नहीं ऐबी। | नेकियाँ मानते नहीं ऐबी। | ||
− | |||
क्यों उन्हीं के लिए न बिख चख लें। | क्यों उन्हीं के लिए न बिख चख लें। | ||
− | |||
वे न तब भी पलक उठायेंगे। | वे न तब भी पलक उठायेंगे। | ||
− | |||
हम पलक पर अगर ललक रख लें। | हम पलक पर अगर ललक रख लें। | ||
बढ़ सकें तो सदा रहें बढ़ते। | बढ़ सकें तो सदा रहें बढ़ते। | ||
− | |||
पर बुरी राह में कभी न बढ़ें। | पर बुरी राह में कभी न बढ़ें। | ||
− | |||
चढ़ सकें तो चढ़ें किसी चित पर। | चढ़ सकें तो चढ़ें किसी चित पर। | ||
− | |||
हम किसी की निगाह पर न चढ़ें। | हम किसी की निगाह पर न चढ़ें। | ||
हैं बहू बेटियाँ जहाँ रहती। | हैं बहू बेटियाँ जहाँ रहती। | ||
− | |||
है दिखाती कलंक लीक वहीं। | है दिखाती कलंक लीक वहीं। | ||
− | |||
क्यों न हो झोंक ही जवानी की। | क्यों न हो झोंक ही जवानी की। | ||
− | |||
है कभी ताक झाँक ठीक नहीं। | है कभी ताक झाँक ठीक नहीं। | ||
क्यों टका सा जवाब उस को दें। | क्यों टका सा जवाब उस को दें। | ||
− | |||
जिस किसी से सदा टके ऐंठें। | जिस किसी से सदा टके ऐंठें। | ||
− | |||
जो रहें ताकते हमारा मुँह। | जो रहें ताकते हमारा मुँह। | ||
− | |||
हम उन्हीं की न ताक में बैठें। | हम उन्हीं की न ताक में बैठें। | ||
बात ताने की, किसी के ऐब की। | बात ताने की, किसी के ऐब की। | ||
− | |||
कह न दें मुँह पर, बचें या चुप रहें। | कह न दें मुँह पर, बचें या चुप रहें। | ||
− | |||
बात सच है, जल मरेगा वह मगर। | बात सच है, जल मरेगा वह मगर। | ||
− | |||
लोग काना को अगर काना कहें। | लोग काना को अगर काना कहें। | ||
काम मत आप कीजिये ऐसे। | काम मत आप कीजिये ऐसे। | ||
− | |||
जो कभी आप को बुरे फल दें। | जो कभी आप को बुरे फल दें। | ||
− | |||
हाथ में लग न जाय मल उस का। | हाथ में लग न जाय मल उस का। | ||
− | |||
नाक को बार बार मत मल दें। | नाक को बार बार मत मल दें। | ||
जो सकें बोल बोलियाँ प्यारी। | जो सकें बोल बोलियाँ प्यारी। | ||
− | |||
तो उसे बोल डालना अच्छा। | तो उसे बोल डालना अच्छा। | ||
− | |||
कान में तेल डाल लेने से। | कान में तेल डाल लेने से। | ||
− | |||
कान का खोल डालना अच्छा। | कान का खोल डालना अच्छा। | ||
छोड़ दो छेड़ छाड़ की आदत। | छोड़ दो छेड़ छाड़ की आदत। | ||
− | |||
मत जगा दो अदावतें सोई। | मत जगा दो अदावतें सोई। | ||
− | |||
है बहुत खोदना बुरा होता। | है बहुत खोदना बुरा होता। | ||
− | |||
देख ले कान खोद कर कोई। | देख ले कान खोद कर कोई। | ||
तब तमाचा न किस तरह लगता। | तब तमाचा न किस तरह लगता। | ||
− | |||
आग जब बेलगामपन बोता। | आग जब बेलगामपन बोता। | ||
− | |||
हो रहे जब कि लाल पीले थे। | हो रहे जब कि लाल पीले थे। | ||
− | |||
तब भला क्यों न लाल मुँह होता। | तब भला क्यों न लाल मुँह होता। | ||
− | हैं अगर चाहते | + | हैं अगर चाहते कुफल चखना। |
− | + | ||
तो बुरी चाहतें जगा देखें। | तो बुरी चाहतें जगा देखें। | ||
− | |||
मुँह लगाना अगर भला है तो। | मुँह लगाना अगर भला है तो। | ||
− | |||
क्यों लहू को न मुँह लगा देखें। | क्यों लहू को न मुँह लगा देखें। | ||
− | काम में ला खुला | + | काम में ला खुला निरघटपन। |
− | + | ||
नाम मरदानगी मिटाना है। | नाम मरदानगी मिटाना है। | ||
− | |||
बेबसों को लपेट चित पट कर। | बेबसों को लपेट चित पट कर। | ||
− | |||
पालना पेट मुँह पिटाना है। | पालना पेट मुँह पिटाना है। | ||
सुन जिसे कोई नहीं पा कल सके। | सुन जिसे कोई नहीं पा कल सके। | ||
− | |||
बात ऐसी क्यों निकल मुँह से पड़े। | बात ऐसी क्यों निकल मुँह से पड़े। | ||
− | |||
रंगतें हित की न जब उन में रहीं। | रंगतें हित की न जब उन में रहीं। | ||
− | |||
फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े। | फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े। | ||
खुल सकेगा तो नहीं ताला कभी। | खुल सकेगा तो नहीं ताला कभी। | ||
− | |||
जो भली रुचि की मिली ताली नहीं। | जो भली रुचि की मिली ताली नहीं। | ||
− | |||
पान की लाली न लाली रखेगी। | पान की लाली न लाली रखेगी। | ||
− | |||
रह सकी मुँह की अगर लाली नहीं। | रह सकी मुँह की अगर लाली नहीं। | ||
बेतरह वे न बेतुके बनते। | बेतरह वे न बेतुके बनते। | ||
− | |||
औ न संजीदगी तुम्हीं खोते। | औ न संजीदगी तुम्हीं खोते। | ||
− | |||
यों सुलगती न लाग-आग कभी। | यों सुलगती न लाग-आग कभी। | ||
− | |||
मुँह-लगे जो न मुँह लगे होते। | मुँह-लगे जो न मुँह लगे होते। | ||
निज भरोसे सधा न क्या साधो। | निज भरोसे सधा न क्या साधो। | ||
− | |||
और का बल-भरोस है सपना। | और का बल-भरोस है सपना। | ||
− | |||
देखना छोड़ दूसरों का मुँह। | देखना छोड़ दूसरों का मुँह। | ||
− | |||
देखते क्यों रहें न मुँह अपना। | देखते क्यों रहें न मुँह अपना। | ||
काम ले बार बार धीरज से। | काम ले बार बार धीरज से। | ||
− | |||
कब न जी की कचट गई खोई। | कब न जी की कचट गई खोई। | ||
− | |||
क्यों दुखों की लपेट में आवे। | क्यों दुखों की लपेट में आवे। | ||
− | |||
क्यों पड़े मुँह लपेट कर कोई। | क्यों पड़े मुँह लपेट कर कोई। | ||
रूप औ रंग के लिए ही क्यों। | रूप औ रंग के लिए ही क्यों। | ||
− | |||
जी किसी की ललच ललच डोले। | जी किसी की ललच ललच डोले। | ||
− | |||
रख भलाई सँभाल भोलापन। | रख भलाई सँभाल भोलापन। | ||
− | |||
भूल पाये न मुँह भले भोले। | भूल पाये न मुँह भले भोले। | ||
चाह जो हो कि दुख नचा न सके। | चाह जो हो कि दुख नचा न सके। | ||
− | |||
पास से सुख नहीं हिले डोले। | पास से सुख नहीं हिले डोले। | ||
− | |||
पाँव तो देख भाल कर डाले। | पाँव तो देख भाल कर डाले। | ||
− | |||
मुँह सँभाले, सँभाल कर बोले। | मुँह सँभाले, सँभाल कर बोले। | ||
तब रहे किस लिए भले बनते। | तब रहे किस लिए भले बनते। | ||
− | |||
जब भली बात ही नहीं सीखी। | जब भली बात ही नहीं सीखी। | ||
− | |||
भूल कर चाहिए नहीं कहना। | भूल कर चाहिए नहीं कहना। | ||
− | |||
बात कड़वी, कड़ी, बुरी, तीखी। | बात कड़वी, कड़ी, बुरी, तीखी। | ||
बात कह कर कसर-भरी ऐंठी। | बात कह कर कसर-भरी ऐंठी। | ||
− | |||
हो गई बार बार बरबादी। | हो गई बार बार बरबादी। | ||
− | |||
बेसधा काम साधा देती है। | बेसधा काम साधा देती है। | ||
− | |||
बात सीधी, सधी हुई, सादी। | बात सीधी, सधी हुई, सादी। | ||
रस न उन का अगर रहे उन में। | रस न उन का अगर रहे उन में। | ||
− | |||
तो बनें बोलियाँ सभी सीठी। | तो बनें बोलियाँ सभी सीठी। | ||
− | |||
है लुभाती भला नहीं किस को। | है लुभाती भला नहीं किस को। | ||
− | |||
बात प्यारी, लुभावनी, मीठी। | बात प्यारी, लुभावनी, मीठी। | ||
है बड़ा ही कमाल कर देती। | है बड़ा ही कमाल कर देती। | ||
− | |||
है सुरुचि-भाल के लिए रोली। | है सुरुचि-भाल के लिए रोली। | ||
− | |||
नींव सारी भलाइयों की है। | नींव सारी भलाइयों की है। | ||
− | |||
बात सच्ची, जँची, भली, भोली। | बात सच्ची, जँची, भली, भोली। | ||
गोद में उस की बड़े ही लाड़ से। | गोद में उस की बड़े ही लाड़ से। | ||
− | |||
है बहुत सी रंग बिरंगी रुचि पली। | है बहुत सी रंग बिरंगी रुचि पली। | ||
− | |||
डाल देती है निराले, ढंग में। | डाल देती है निराले, ढंग में। | ||
− | |||
बात भड़कीली, ढँगीली, रसढली। | बात भड़कीली, ढँगीली, रसढली। | ||
धान रतन धुन उन्हें नहीं रहती। | धान रतन धुन उन्हें नहीं रहती। | ||
− | |||
हैं नहीं मोहते उन्हें मेवे। | हैं नहीं मोहते उन्हें मेवे। | ||
− | |||
मानियों का यही मनाना है। | मानियों का यही मनाना है। | ||
− | |||
मान कर बात, मान रख लेवे। | मान कर बात, मान रख लेवे। | ||
हो न भारी सके कभी हलके। | हो न भारी सके कभी हलके। | ||
− | |||
हैं न छिपती खुली हुई बातें। | हैं न छिपती खुली हुई बातें। | ||
− | |||
तोलने के लिए भला किस को। | तोलने के लिए भला किस को। | ||
− | |||
तुल गये कह तली हुई बातें। | तुल गये कह तली हुई बातें। | ||
है बड़ी बेहूदगी जो काम की। | है बड़ी बेहूदगी जो काम की। | ||
− | |||
बात सुनने के लिए बहरे बने। | बात सुनने के लिए बहरे बने। | ||
− | |||
तो किसी गाँव की न गहराई रही। | तो किसी गाँव की न गहराई रही। | ||
− | |||
जो न गहरी बात कह गहरे बने। | जो न गहरी बात कह गहरे बने। | ||
छेद जिसमें अनेक हैं उसमें। | छेद जिसमें अनेक हैं उसमें। | ||
− | |||
सोच लो पौन का ठिकाना क्या। | सोच लो पौन का ठिकाना क्या। | ||
− | |||
कढ़ गई कढ़ गई चली न चली। | कढ़ गई कढ़ गई चली न चली। | ||
− | |||
साँस का है भला ठिकाना क्या। | साँस का है भला ठिकाना क्या। | ||
याद प्रभु को करें जियें जब तक। | याद प्रभु को करें जियें जब तक। | ||
− | |||
लोक-हित की न बुझ सकें प्यासें। | लोक-हित की न बुझ सकें प्यासें। | ||
− | |||
हम गँवा दें इन्हें नहीं यों ही। | हम गँवा दें इन्हें नहीं यों ही। | ||
− | + | हैं बड़ी ही अमोल ये साँसें। | |
− | हैं बड़ी ही अमोल | + | |
जी सका सब दिनों हवा पी जो। | जी सका सब दिनों हवा पी जो। | ||
− | |||
उस बिचारे के पास ही क्या है। | उस बिचारे के पास ही क्या है। | ||
− | |||
किस तरह से सुचित हो कोई। | किस तरह से सुचित हो कोई। | ||
− | |||
साँस की आस आस ही क्या है। | साँस की आस आस ही क्या है। | ||
जो भले भाव भूल में डालें। | जो भले भाव भूल में डालें। | ||
− | |||
तो उन्हें प्यार साथ पोसा क्या। | तो उन्हें प्यार साथ पोसा क्या। | ||
− | |||
जो भला कर सको तुरत कर लो। | जो भला कर सको तुरत कर लो। | ||
− | |||
साँस का है भला भरोसा क्या। | साँस का है भला भरोसा क्या। | ||
है वही फूला सुखी जो कर सका। | है वही फूला सुखी जो कर सका। | ||
− | |||
वह न फूला दुख दिया जिस ने सहा। | वह न फूला दुख दिया जिस ने सहा। | ||
− | |||
फूल जैसा फूल जो पाता नहीं। | फूल जैसा फूल जो पाता नहीं। | ||
− | |||
दम किसी का फूलता तो क्या रहा। | दम किसी का फूलता तो क्या रहा। | ||
मान की चाह है हमें तो हम। | मान की चाह है हमें तो हम। | ||
− | |||
और का मान कर न कम देवें। | और का मान कर न कम देवें। | ||
− | + | काम साधो कमीनपन न करें। | |
− | काम | + | |
− | + | ||
दाम लेवें मगर न दम देवें। | दाम लेवें मगर न दम देवें। | ||
− | + | धाँधली में हवा हवस की पड़। | |
− | + | क्यों मचाता अनेक ऊधम है। | |
− | क्यों मचाता अनेक | + | |
− | + | ||
जो रहा राम में न रमता तो। | जो रहा राम में न रमता तो। | ||
− | |||
दाम दम का छदाम से कम है। | दाम दम का छदाम से कम है। | ||
जो मरम जानते दया का हम। | जो मरम जानते दया का हम। | ||
− | + | तो उजड़ता न एक भी खोता। | |
− | तो उजड़ता न एक भी | + | |
− | + | ||
क्यों न होता दुलार दुनिया में। | क्यों न होता दुलार दुनिया में। | ||
− | |||
प्यार का पाठ कंठ जो होता। | प्यार का पाठ कंठ जो होता। | ||
मोतियों से पिरो न क्यों देवें। | मोतियों से पिरो न क्यों देवें। | ||
− | |||
कब समझदार हो सके संठे। | कब समझदार हो सके संठे। | ||
− | |||
लंठ के लंठ ही रहेंगे वे। | लंठ के लंठ ही रहेंगे वे। | ||
− | |||
लंठ लें कंठ में पहन कंठे। | लंठ लें कंठ में पहन कंठे। | ||
जब किसी का पाँव हैं हम चूमते। | जब किसी का पाँव हैं हम चूमते। | ||
− | |||
हाथ बाँधो सामने जब हैं खड़े। | हाथ बाँधो सामने जब हैं खड़े। | ||
− | |||
लाख या दो लाख या दस लाख के। | लाख या दो लाख या दस लाख के। | ||
− | |||
क्या रहे तब कंठ में कंठे पड़े। | क्या रहे तब कंठ में कंठे पड़े। | ||
क्या हुआ प्यारे-पालने में। | क्या हुआ प्यारे-पालने में। | ||
− | |||
जो नहीं है कमाल भेजे में। | जो नहीं है कमाल भेजे में। | ||
− | |||
वे रखे जाँय कालिजों में भी। | वे रखे जाँय कालिजों में भी। | ||
− | |||
जो गये हैं रखे कलेजे में। | जो गये हैं रखे कलेजे में। | ||
मन मरे दूर हो अमन जिससे। | मन मरे दूर हो अमन जिससे। | ||
− | |||
सुख पिसे, चूर चूर हो, नेकी। | सुख पिसे, चूर चूर हो, नेकी। | ||
− | |||
है बनाती कड़ा नहीं किस को। | है बनाती कड़ा नहीं किस को। | ||
− | |||
वह कड़ाई कड़े कलेजे की। | वह कड़ाई कड़े कलेजे की। | ||
तब भला किस तरह भलाई हो। | तब भला किस तरह भलाई हो। | ||
− | |||
भर गई भूल जब कि भेजे में। | भर गई भूल जब कि भेजे में। | ||
− | |||
तब सके गाँठ हम कहाँ मतलब। | तब सके गाँठ हम कहाँ मतलब। | ||
− | |||
पड़ गई गाँठ जब कलेजे में। | पड़ गई गाँठ जब कलेजे में। | ||
बन पराया मिले परायापन। | बन पराया मिले परायापन। | ||
− | |||
कब तपाया हमें नहीं तप ने। | कब तपाया हमें नहीं तप ने। | ||
− | |||
और के हाथ में न दिल दे दें। | और के हाथ में न दिल दे दें। | ||
− | |||
दिल सदा हाथ में रखें अपने। | दिल सदा हाथ में रखें अपने। | ||
− | बात उलझी | + | बात उलझी बहक बहक न कहें। |
− | + | ||
बात सुलझी सँभल सँभल बोलें। | बात सुलझी सँभल सँभल बोलें। | ||
− | |||
पड़ न पावे गिरह किसी दिल में। | पड़ न पावे गिरह किसी दिल में। | ||
− | + | लें गिरह बाँध दिल गिरह खोलें। | |
− | लें गिरह | + | |
बेबसी है बरस रही जिस पर। | बेबसी है बरस रही जिस पर। | ||
− | |||
तीर उस पर न तान कर निकले। | तीर उस पर न तान कर निकले। | ||
− | |||
यह कसर है बहुत बड़ी दिल की। | यह कसर है बहुत बड़ी दिल की। | ||
− | |||
सर हुए पर, न दिल कसर निकले। | सर हुए पर, न दिल कसर निकले। | ||
बीज बो कर बुरे बुरे फल के। | बीज बो कर बुरे बुरे फल के। | ||
− | |||
कब भले फल फले फलाने से। | कब भले फल फले फलाने से। | ||
− | |||
दुख मिले क्योें न और को दुख दे। | दुख मिले क्योें न और को दुख दे। | ||
− | |||
दिल जले क्यों न दिल जलाने से। | दिल जले क्यों न दिल जलाने से। | ||
छोड़ दे छल, कपट, छिछोरापन। | छोड़ दे छल, कपट, छिछोरापन। | ||
− | |||
देख कर छबि न जाय बन छैला। | देख कर छबि न जाय बन छैला। | ||
− | |||
और के माल पर न हो मायल। | और के माल पर न हो मायल। | ||
− | |||
दिल किसी मैल से न हो मैला। | दिल किसी मैल से न हो मैला। | ||
वह भरा है भयावनेपन से। | वह भरा है भयावनेपन से। | ||
− | |||
है हलाहल भरा हुआ प्याला। | है हलाहल भरा हुआ प्याला। | ||
− | |||
साँप काला पला उसी में है। | साँप काला पला उसी में है। | ||
− | |||
काल से है कराल दिल काला। | काल से है कराल दिल काला। | ||
मान औरों की न मनमानी करे। | मान औरों की न मनमानी करे। | ||
− | |||
क्यों रहे अभिमान कर हठ ठानता। | क्यों रहे अभिमान कर हठ ठानता। | ||
− | |||
है इसी में मान, रहता मान का। | है इसी में मान, रहता मान का। | ||
− | |||
ले मना, जो मन नहीं है मानता। | ले मना, जो मन नहीं है मानता। | ||
और का बार बार दिल दहला। | और का बार बार दिल दहला। | ||
− | |||
भूल कर मन न जाय बहलाया। | भूल कर मन न जाय बहलाया। | ||
− | + | तो उमंगें न आन की कुचलें। | |
− | तो उमंगें न आन की | + | |
− | + | ||
मन अगर है उमंग पर आया। | मन अगर है उमंग पर आया। | ||
− | बीज मीठे | + | बीज मीठे जाय क्यों बोये नहीं। |
− | + | ||
है अगर यह चाह मीठे फल चखें। | है अगर यह चाह मीठे फल चखें। | ||
− | |||
पत रखें, जो पत रखाना हो हमें। | पत रखें, जो पत रखाना हो हमें। | ||
− | |||
चूक है मन रख न जो हम मन रखें। | चूक है मन रख न जो हम मन रखें। | ||
सूझ कर सूझता नहीं जिन को। | सूझ कर सूझता नहीं जिन को। | ||
− | |||
वे उन्हें दूर की सुझाते हैं। | वे उन्हें दूर की सुझाते हैं। | ||
− | |||
काम है सूझ बूझ का करते। | काम है सूझ बूझ का करते। | ||
− | |||
पेट की आग जो बुझाते हैं। | पेट की आग जो बुझाते हैं। | ||
है बड़ा वह जो पराया हित करे। | है बड़ा वह जो पराया हित करे। | ||
− | |||
हित हितू का कौन करता है नहीं। | हित हितू का कौन करता है नहीं। | ||
− | |||
है भला वह, पेट जो पर का भरे। | है भला वह, पेट जो पर का भरे। | ||
− | |||
कौन अपना पेट भरता है नहीं। | कौन अपना पेट भरता है नहीं। | ||
</poem> | </poem> |
15:05, 18 मार्च 2014 के समय का अवतरण
सैकड़ों ही कपूत-काया से।
है भली एक सपूत की छाया।
हो पड़ी चूर खोपड़ी ने ही।
अनगिनत बाल पाल क्या पाया।
जो भला है और चलता है सँभल।
है भला उस को किसी से कौन डर।
दैव की टेढ़ी अगर भौंहें न हों।
क्या करेंगे लोग टेढ़ी भौंह कर।
नेकियाँ मानते नहीं ऐबी।
क्यों उन्हीं के लिए न बिख चख लें।
वे न तब भी पलक उठायेंगे।
हम पलक पर अगर ललक रख लें।
बढ़ सकें तो सदा रहें बढ़ते।
पर बुरी राह में कभी न बढ़ें।
चढ़ सकें तो चढ़ें किसी चित पर।
हम किसी की निगाह पर न चढ़ें।
हैं बहू बेटियाँ जहाँ रहती।
है दिखाती कलंक लीक वहीं।
क्यों न हो झोंक ही जवानी की।
है कभी ताक झाँक ठीक नहीं।
क्यों टका सा जवाब उस को दें।
जिस किसी से सदा टके ऐंठें।
जो रहें ताकते हमारा मुँह।
हम उन्हीं की न ताक में बैठें।
बात ताने की, किसी के ऐब की।
कह न दें मुँह पर, बचें या चुप रहें।
बात सच है, जल मरेगा वह मगर।
लोग काना को अगर काना कहें।
काम मत आप कीजिये ऐसे।
जो कभी आप को बुरे फल दें।
हाथ में लग न जाय मल उस का।
नाक को बार बार मत मल दें।
जो सकें बोल बोलियाँ प्यारी।
तो उसे बोल डालना अच्छा।
कान में तेल डाल लेने से।
कान का खोल डालना अच्छा।
छोड़ दो छेड़ छाड़ की आदत।
मत जगा दो अदावतें सोई।
है बहुत खोदना बुरा होता।
देख ले कान खोद कर कोई।
तब तमाचा न किस तरह लगता।
आग जब बेलगामपन बोता।
हो रहे जब कि लाल पीले थे।
तब भला क्यों न लाल मुँह होता।
हैं अगर चाहते कुफल चखना।
तो बुरी चाहतें जगा देखें।
मुँह लगाना अगर भला है तो।
क्यों लहू को न मुँह लगा देखें।
काम में ला खुला निरघटपन।
नाम मरदानगी मिटाना है।
बेबसों को लपेट चित पट कर।
पालना पेट मुँह पिटाना है।
सुन जिसे कोई नहीं पा कल सके।
बात ऐसी क्यों निकल मुँह से पड़े।
रंगतें हित की न जब उन में रहीं।
फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े।
खुल सकेगा तो नहीं ताला कभी।
जो भली रुचि की मिली ताली नहीं।
पान की लाली न लाली रखेगी।
रह सकी मुँह की अगर लाली नहीं।
बेतरह वे न बेतुके बनते।
औ न संजीदगी तुम्हीं खोते।
यों सुलगती न लाग-आग कभी।
मुँह-लगे जो न मुँह लगे होते।
निज भरोसे सधा न क्या साधो।
और का बल-भरोस है सपना।
देखना छोड़ दूसरों का मुँह।
देखते क्यों रहें न मुँह अपना।
काम ले बार बार धीरज से।
कब न जी की कचट गई खोई।
क्यों दुखों की लपेट में आवे।
क्यों पड़े मुँह लपेट कर कोई।
रूप औ रंग के लिए ही क्यों।
जी किसी की ललच ललच डोले।
रख भलाई सँभाल भोलापन।
भूल पाये न मुँह भले भोले।
चाह जो हो कि दुख नचा न सके।
पास से सुख नहीं हिले डोले।
पाँव तो देख भाल कर डाले।
मुँह सँभाले, सँभाल कर बोले।
तब रहे किस लिए भले बनते।
जब भली बात ही नहीं सीखी।
भूल कर चाहिए नहीं कहना।
बात कड़वी, कड़ी, बुरी, तीखी।
बात कह कर कसर-भरी ऐंठी।
हो गई बार बार बरबादी।
बेसधा काम साधा देती है।
बात सीधी, सधी हुई, सादी।
रस न उन का अगर रहे उन में।
तो बनें बोलियाँ सभी सीठी।
है लुभाती भला नहीं किस को।
बात प्यारी, लुभावनी, मीठी।
है बड़ा ही कमाल कर देती।
है सुरुचि-भाल के लिए रोली।
नींव सारी भलाइयों की है।
बात सच्ची, जँची, भली, भोली।
गोद में उस की बड़े ही लाड़ से।
है बहुत सी रंग बिरंगी रुचि पली।
डाल देती है निराले, ढंग में।
बात भड़कीली, ढँगीली, रसढली।
धान रतन धुन उन्हें नहीं रहती।
हैं नहीं मोहते उन्हें मेवे।
मानियों का यही मनाना है।
मान कर बात, मान रख लेवे।
हो न भारी सके कभी हलके।
हैं न छिपती खुली हुई बातें।
तोलने के लिए भला किस को।
तुल गये कह तली हुई बातें।
है बड़ी बेहूदगी जो काम की।
बात सुनने के लिए बहरे बने।
तो किसी गाँव की न गहराई रही।
जो न गहरी बात कह गहरे बने।
छेद जिसमें अनेक हैं उसमें।
सोच लो पौन का ठिकाना क्या।
कढ़ गई कढ़ गई चली न चली।
साँस का है भला ठिकाना क्या।
याद प्रभु को करें जियें जब तक।
लोक-हित की न बुझ सकें प्यासें।
हम गँवा दें इन्हें नहीं यों ही।
हैं बड़ी ही अमोल ये साँसें।
जी सका सब दिनों हवा पी जो।
उस बिचारे के पास ही क्या है।
किस तरह से सुचित हो कोई।
साँस की आस आस ही क्या है।
जो भले भाव भूल में डालें।
तो उन्हें प्यार साथ पोसा क्या।
जो भला कर सको तुरत कर लो।
साँस का है भला भरोसा क्या।
है वही फूला सुखी जो कर सका।
वह न फूला दुख दिया जिस ने सहा।
फूल जैसा फूल जो पाता नहीं।
दम किसी का फूलता तो क्या रहा।
मान की चाह है हमें तो हम।
और का मान कर न कम देवें।
काम साधो कमीनपन न करें।
दाम लेवें मगर न दम देवें।
धाँधली में हवा हवस की पड़।
क्यों मचाता अनेक ऊधम है।
जो रहा राम में न रमता तो।
दाम दम का छदाम से कम है।
जो मरम जानते दया का हम।
तो उजड़ता न एक भी खोता।
क्यों न होता दुलार दुनिया में।
प्यार का पाठ कंठ जो होता।
मोतियों से पिरो न क्यों देवें।
कब समझदार हो सके संठे।
लंठ के लंठ ही रहेंगे वे।
लंठ लें कंठ में पहन कंठे।
जब किसी का पाँव हैं हम चूमते।
हाथ बाँधो सामने जब हैं खड़े।
लाख या दो लाख या दस लाख के।
क्या रहे तब कंठ में कंठे पड़े।
क्या हुआ प्यारे-पालने में।
जो नहीं है कमाल भेजे में।
वे रखे जाँय कालिजों में भी।
जो गये हैं रखे कलेजे में।
मन मरे दूर हो अमन जिससे।
सुख पिसे, चूर चूर हो, नेकी।
है बनाती कड़ा नहीं किस को।
वह कड़ाई कड़े कलेजे की।
तब भला किस तरह भलाई हो।
भर गई भूल जब कि भेजे में।
तब सके गाँठ हम कहाँ मतलब।
पड़ गई गाँठ जब कलेजे में।
बन पराया मिले परायापन।
कब तपाया हमें नहीं तप ने।
और के हाथ में न दिल दे दें।
दिल सदा हाथ में रखें अपने।
बात उलझी बहक बहक न कहें।
बात सुलझी सँभल सँभल बोलें।
पड़ न पावे गिरह किसी दिल में।
लें गिरह बाँध दिल गिरह खोलें।
बेबसी है बरस रही जिस पर।
तीर उस पर न तान कर निकले।
यह कसर है बहुत बड़ी दिल की।
सर हुए पर, न दिल कसर निकले।
बीज बो कर बुरे बुरे फल के।
कब भले फल फले फलाने से।
दुख मिले क्योें न और को दुख दे।
दिल जले क्यों न दिल जलाने से।
छोड़ दे छल, कपट, छिछोरापन।
देख कर छबि न जाय बन छैला।
और के माल पर न हो मायल।
दिल किसी मैल से न हो मैला।
वह भरा है भयावनेपन से।
है हलाहल भरा हुआ प्याला।
साँप काला पला उसी में है।
काल से है कराल दिल काला।
मान औरों की न मनमानी करे।
क्यों रहे अभिमान कर हठ ठानता।
है इसी में मान, रहता मान का।
ले मना, जो मन नहीं है मानता।
और का बार बार दिल दहला।
भूल कर मन न जाय बहलाया।
तो उमंगें न आन की कुचलें।
मन अगर है उमंग पर आया।
बीज मीठे जाय क्यों बोये नहीं।
है अगर यह चाह मीठे फल चखें।
पत रखें, जो पत रखाना हो हमें।
चूक है मन रख न जो हम मन रखें।
सूझ कर सूझता नहीं जिन को।
वे उन्हें दूर की सुझाते हैं।
काम है सूझ बूझ का करते।
पेट की आग जो बुझाते हैं।
है बड़ा वह जो पराया हित करे।
हित हितू का कौन करता है नहीं।
है भला वह, पेट जो पर का भरे।
कौन अपना पेट भरता है नहीं।