"अछूते फूल / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | फूल में कीट, चाँद में धब्बे। | |
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आग में धूम, दीप में काजल। | आग में धूम, दीप में काजल। | ||
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मैल जल में, मलीनता मन में। | मैल जल में, मलीनता मन में। | ||
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देख किस का गया नहीं दिल मल। | देख किस का गया नहीं दिल मल। | ||
है बुरा, घास-फूस-वाला घर। | है बुरा, घास-फूस-वाला घर। | ||
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मल भरा तन, गरल भरा प्याला। | मल भरा तन, गरल भरा प्याला। | ||
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रिस भरी आँख, सर भरा सौदा। | रिस भरी आँख, सर भरा सौदा। | ||
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मन भरा मैल, दिल कसर वाला। | मन भरा मैल, दिल कसर वाला। | ||
है कहाँ गोद तो भरी पूरी। | है कहाँ गोद तो भरी पूरी। | ||
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जो सकी गोद में न लाल सुला। | जो सकी गोद में न लाल सुला। | ||
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क्या मिला पूत जो सपूत नहीं। | क्या मिला पूत जो सपूत नहीं। | ||
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क्या खुली कोख जो न भाग खुला। | क्या खुली कोख जो न भाग खुला। | ||
क्या रहा ताल तब भरा जल से। | क्या रहा ताल तब भरा जल से। | ||
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जब कि उस में रहा कमल न खिला। | जब कि उस में रहा कमल न खिला। | ||
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क्या फली डाल जो सुफल न फली। | क्या फली डाल जो सुफल न फली। | ||
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क्या खुली कोख जो न लाल मिला। | क्या खुली कोख जो न लाल मिला। | ||
पुल सकेगा न बँधा सितारों पर। | पुल सकेगा न बँधा सितारों पर। | ||
− | + | कुल धारा धूल ढुल नहीं सकती। | |
− | + | धुल सकेंगे न चाँद के धब्बे। | |
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− | धुल सकेंगे न चाँद के | + | |
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बाँझ की कोख खुल नहीं सकती। | बाँझ की कोख खुल नहीं सकती। | ||
जब नहीं उस ने बुझाई भूख तो। | जब नहीं उस ने बुझाई भूख तो। | ||
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मोतियों से क्या भरी थाली रही। | मोतियों से क्या भरी थाली रही। | ||
− | + | जो न उस के फल किसी को मिल सके। | |
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तो फलों से क्या लदी डाली रही। | तो फलों से क्या लदी डाली रही। | ||
− | जोत | + | जोत वैसे मलीन होवेगी। |
− | + | क्या हुआ भूमि पर अगर फ़ैली। | |
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धूल से भर कभी न धूप सकी। | धूल से भर कभी न धूप सकी। | ||
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हो सकी चाँदनी नहीं मैली। | हो सकी चाँदनी नहीं मैली। | ||
आम में आ सका न कड़वापन। | आम में आ सका न कड़वापन। | ||
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है मिठाई न नीम में आती। | है मिठाई न नीम में आती। | ||
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छोड़ ऊँचा सका न ऊँचापन। | छोड़ ऊँचा सका न ऊँचापन। | ||
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नीच की नीचता नहीं जाती। | नीच की नीचता नहीं जाती। | ||
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15:10, 18 मार्च 2014 के समय का अवतरण
फूल में कीट, चाँद में धब्बे।
आग में धूम, दीप में काजल।
मैल जल में, मलीनता मन में।
देख किस का गया नहीं दिल मल।
है बुरा, घास-फूस-वाला घर।
मल भरा तन, गरल भरा प्याला।
रिस भरी आँख, सर भरा सौदा।
मन भरा मैल, दिल कसर वाला।
है कहाँ गोद तो भरी पूरी।
जो सकी गोद में न लाल सुला।
क्या मिला पूत जो सपूत नहीं।
क्या खुली कोख जो न भाग खुला।
क्या रहा ताल तब भरा जल से।
जब कि उस में रहा कमल न खिला।
क्या फली डाल जो सुफल न फली।
क्या खुली कोख जो न लाल मिला।
पुल सकेगा न बँधा सितारों पर।
कुल धारा धूल ढुल नहीं सकती।
धुल सकेंगे न चाँद के धब्बे।
बाँझ की कोख खुल नहीं सकती।
जब नहीं उस ने बुझाई भूख तो।
मोतियों से क्या भरी थाली रही।
जो न उस के फल किसी को मिल सके।
तो फलों से क्या लदी डाली रही।
जोत वैसे मलीन होवेगी।
क्या हुआ भूमि पर अगर फ़ैली।
धूल से भर कभी न धूप सकी।
हो सकी चाँदनी नहीं मैली।
आम में आ सका न कड़वापन।
है मिठाई न नीम में आती।
छोड़ ऊँचा सका न ऊँचापन।
नीच की नीचता नहीं जाती।