"देवदेव चौपदे / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | अब बहुत ही दलक रहा है दिल। | |
− | + | हो गईं आज दसगुनी दलकें। | |
− | हो गईं आज दसगुनी | + | ऊबता हूँ उबारने वाले। |
− | + | आइये, हैं बिछी हुई पलकें। | |
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डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। | डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। | ||
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जी हमारा कर न डाँवाडोल दे। | जी हमारा कर न डाँवाडोल दे। | ||
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इन दिनों तो है बिपत खुल खेलती। | इन दिनों तो है बिपत खुल खेलती। | ||
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तू भला अब भी पलक तो खोल दे। | तू भला अब भी पलक तो खोल दे। | ||
− | + | कुछ बनाये नहीं बनी अब तक। | |
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जान पर आ बनी बचा न सके। | जान पर आ बनी बचा न सके। | ||
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हम कहें क्या तपाक की बातें। | हम कहें क्या तपाक की बातें। | ||
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आप की राह ताक ताक थके। | आप की राह ताक ताक थके। | ||
मान औ आन बान महलों पर। | मान औ आन बान महलों पर। | ||
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डाह बिजली अनेक बार गिरी। | डाह बिजली अनेक बार गिरी। | ||
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हो गये फेर में पड़े बरसों। | हो गये फेर में पड़े बरसों। | ||
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आप की दीठ आज भी न फिरी। | आप की दीठ आज भी न फिरी। | ||
बैर है बरबाद हम को कर रहा। | बैर है बरबाद हम को कर रहा। | ||
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फूट का है दुंद घर घर में मचा। | फूट का है दुंद घर घर में मचा। | ||
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हम बचाये बच सकेंगे आप के। | हम बचाये बच सकेंगे आप के। | ||
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आप मत अपनी निगाहें लें बचा। | आप मत अपनी निगाहें लें बचा। | ||
हम बड़े ही बखेड़िये होवें। | हम बड़े ही बखेड़िये होवें। | ||
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आप यों मत उखेड़िये बखिये। | आप यों मत उखेड़िये बखिये। | ||
− | |||
पास करना अगर पसंद नहीं। | पास करना अगर पसंद नहीं। | ||
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गाह गाहें निगाह तो रखिये। | गाह गाहें निगाह तो रखिये। | ||
गत हमारी बना रहे हो क्यों। | गत हमारी बना रहे हो क्यों। | ||
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मिल न, गद की सकी हमें लकड़ी। | मिल न, गद की सकी हमें लकड़ी। | ||
− | |||
पाँव हम तो रहे पकड़ते ही। | पाँव हम तो रहे पकड़ते ही। | ||
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पर कहाँ बाँह आप ने पकड़ी। | पर कहाँ बाँह आप ने पकड़ी। | ||
देखिये आप आ कलेजे में। | देखिये आप आ कलेजे में। | ||
− | + | पड़ गये कुछ अजीब छाले हैं। | |
− | पड़ गये | + | |
− | + | ||
आप के हाथ अब निबाह रही। | आप के हाथ अब निबाह रही। | ||
− | |||
आप ही चार बाँहवाले हैं। | आप ही चार बाँहवाले हैं। | ||
खोलिये पलकें दया कर देखिये। | खोलिये पलकें दया कर देखिये। | ||
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मूँछ के भी बाल अब हैं बिन रहे। | मूँछ के भी बाल अब हैं बिन रहे। | ||
− | |||
दिन फिरेंगे या फिरेंगे ही नहीं। | दिन फिरेंगे या फिरेंगे ही नहीं। | ||
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ऊब दिन हैं उँगलियों पर गिन रहे। | ऊब दिन हैं उँगलियों पर गिन रहे। | ||
अब नहीं है निबाह हो पाता। | अब नहीं है निबाह हो पाता। | ||
− | |||
नेह करिये निहारिये हम को। | नेह करिये निहारिये हम को। | ||
− | + | क्या उबर अब नहीं सकेंगे हम। | |
− | क्या उबर अब नहीं | + | |
− | + | ||
हाथ देकर उबारिये हम को। | हाथ देकर उबारिये हम को। | ||
− | पास मेरे | + | पास मेरे इधर उधर आगे। |
− | + | ||
है दुखों का पड़ा हुआ डेरा। | है दुखों का पड़ा हुआ डेरा। | ||
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है गई अब बुरी पकड़ पकड़ी। | है गई अब बुरी पकड़ पकड़ी। | ||
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आप आ हाथ लें पकड़ मेरा। | आप आ हाथ लें पकड़ मेरा। | ||
फिर रही है बुरी बला पीछे। | फिर रही है बुरी बला पीछे। | ||
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खोलता दुख बिहंग है फिर पर। | खोलता दुख बिहंग है फिर पर। | ||
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बेतरह फेर में पड़े हम हैं। | बेतरह फेर में पड़े हम हैं। | ||
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फेरते हाथ क्यों नहीं सिर पर। | फेरते हाथ क्यों नहीं सिर पर। | ||
बह रहे हैं बिपत लहर में हम। | बह रहे हैं बिपत लहर में हम। | ||
− | |||
अब दया का दिखा किनारा दें। | अब दया का दिखा किनारा दें। | ||
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क्या कहूँ और-हूँ बहुत हारा। | क्या कहूँ और-हूँ बहुत हारा। | ||
− | |||
प्रभु हमें हाथ का सहारा दें। | प्रभु हमें हाथ का सहारा दें। | ||
− | क्यों दिखाने में | + | क्यों दिखाने में अँगूठा दीन को। |
− | + | ||
आप की रुचि आज दिन यों है तुली। | आप की रुचि आज दिन यों है तुली। | ||
− | |||
हैं तरसते एक मूठी अन्न को। | हैं तरसते एक मूठी अन्न को। | ||
− | |||
आप की मूठी नहीं अब भी खुली। | आप की मूठी नहीं अब भी खुली। | ||
दें न हलवे छीन तो करवे न लें। | दें न हलवे छीन तो करवे न लें। | ||
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नाथ कब तक देखते जलवे रहें। | नाथ कब तक देखते जलवे रहें। | ||
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कब तलक बलवे रहेंगे देस में। | कब तलक बलवे रहेंगे देस में। | ||
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कब तलक हम चाटते तलवे रहें। | कब तलक हम चाटते तलवे रहें। | ||
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11:32, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
अब बहुत ही दलक रहा है दिल।
हो गईं आज दसगुनी दलकें।
ऊबता हूँ उबारने वाले।
आइये, हैं बिछी हुई पलकें।
डाल दे सिर पर न सारी उलझनें।
जी हमारा कर न डाँवाडोल दे।
इन दिनों तो है बिपत खुल खेलती।
तू भला अब भी पलक तो खोल दे।
कुछ बनाये नहीं बनी अब तक।
जान पर आ बनी बचा न सके।
हम कहें क्या तपाक की बातें।
आप की राह ताक ताक थके।
मान औ आन बान महलों पर।
डाह बिजली अनेक बार गिरी।
हो गये फेर में पड़े बरसों।
आप की दीठ आज भी न फिरी।
बैर है बरबाद हम को कर रहा।
फूट का है दुंद घर घर में मचा।
हम बचाये बच सकेंगे आप के।
आप मत अपनी निगाहें लें बचा।
हम बड़े ही बखेड़िये होवें।
आप यों मत उखेड़िये बखिये।
पास करना अगर पसंद नहीं।
गाह गाहें निगाह तो रखिये।
गत हमारी बना रहे हो क्यों।
मिल न, गद की सकी हमें लकड़ी।
पाँव हम तो रहे पकड़ते ही।
पर कहाँ बाँह आप ने पकड़ी।
देखिये आप आ कलेजे में।
पड़ गये कुछ अजीब छाले हैं।
आप के हाथ अब निबाह रही।
आप ही चार बाँहवाले हैं।
खोलिये पलकें दया कर देखिये।
मूँछ के भी बाल अब हैं बिन रहे।
दिन फिरेंगे या फिरेंगे ही नहीं।
ऊब दिन हैं उँगलियों पर गिन रहे।
अब नहीं है निबाह हो पाता।
नेह करिये निहारिये हम को।
क्या उबर अब नहीं सकेंगे हम।
हाथ देकर उबारिये हम को।
पास मेरे इधर उधर आगे।
है दुखों का पड़ा हुआ डेरा।
है गई अब बुरी पकड़ पकड़ी।
आप आ हाथ लें पकड़ मेरा।
फिर रही है बुरी बला पीछे।
खोलता दुख बिहंग है फिर पर।
बेतरह फेर में पड़े हम हैं।
फेरते हाथ क्यों नहीं सिर पर।
बह रहे हैं बिपत लहर में हम।
अब दया का दिखा किनारा दें।
क्या कहूँ और-हूँ बहुत हारा।
प्रभु हमें हाथ का सहारा दें।
क्यों दिखाने में अँगूठा दीन को।
आप की रुचि आज दिन यों है तुली।
हैं तरसते एक मूठी अन्न को।
आप की मूठी नहीं अब भी खुली।
दें न हलवे छीन तो करवे न लें।
नाथ कब तक देखते जलवे रहें।
कब तलक बलवे रहेंगे देस में।
कब तलक हम चाटते तलवे रहें।