"सच्चे वीर / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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हाथ झंडा जब सुधारों का लिया। | हाथ झंडा जब सुधारों का लिया। | ||
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तब भला वह मूसलों को क्या गिने। | तब भला वह मूसलों को क्या गिने। | ||
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जब किसी ने ओखली में सिर दिया। | जब किसी ने ओखली में सिर दिया। | ||
दूसरे को उबार लेते हैं। | दूसरे को उबार लेते हैं। | ||
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एक दो बीर ही बिपद में गिर। | एक दो बीर ही बिपद में गिर। | ||
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पर बहुत लोग पाक बनते हैं। | पर बहुत लोग पाक बनते हैं। | ||
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ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर। | ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर। | ||
− | सामने पाकर बिपद की | + | सामने पाकर बिपद की आँधियाँ। |
− | + | बीर मुखड़ा नेक कुम्हलाता नहीं। | |
− | बीर मुखड़ा नेक | + | |
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देख कर आती उमड़ती दुख-घटा। | देख कर आती उमड़ती दुख-घटा। | ||
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आँख में आँसू उमड़ आता नहीं। | आँख में आँसू उमड़ आता नहीं। | ||
सब दिनों मुँह देख जीवट का जिये। | सब दिनों मुँह देख जीवट का जिये। | ||
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लात अब कायरपने की क्यों सहें। | लात अब कायरपने की क्यों सहें। | ||
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क्यों न बैरी को बिपद में डाल दें। | क्यों न बैरी को बिपद में डाल दें। | ||
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हम भला क्यों डालते आँसू रहें। | हम भला क्यों डालते आँसू रहें। | ||
वे कभी बात में नहीं आते। | वे कभी बात में नहीं आते। | ||
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लग गई हैं जिन्हें कि सच्ची धुन। | लग गई हैं जिन्हें कि सच्ची धुन। | ||
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वे भला आप सूख जाते क्या। | वे भला आप सूख जाते क्या। | ||
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मुख न सूखा जवाब सूखा सुन। | मुख न सूखा जवाब सूखा सुन। | ||
काल की परवाह बीरों को नहीं। | काल की परवाह बीरों को नहीं। | ||
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वह रहे उन को भले ही लूटता। | वह रहे उन को भले ही लूटता। | ||
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काम छेड़ा छूटता छोड़े नहीं। | काम छेड़ा छूटता छोड़े नहीं। | ||
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टूटता है दम रहे तो टूटता। | टूटता है दम रहे तो टूटता। | ||
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16:14, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
संकटों की तब करे परवाह क्या।
हाथ झंडा जब सुधारों का लिया।
तब भला वह मूसलों को क्या गिने।
जब किसी ने ओखली में सिर दिया।
दूसरे को उबार लेते हैं।
एक दो बीर ही बिपद में गिर।
पर बहुत लोग पाक बनते हैं।
ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर।
सामने पाकर बिपद की आँधियाँ।
बीर मुखड़ा नेक कुम्हलाता नहीं।
देख कर आती उमड़ती दुख-घटा।
आँख में आँसू उमड़ आता नहीं।
सब दिनों मुँह देख जीवट का जिये।
लात अब कायरपने की क्यों सहें।
क्यों न बैरी को बिपद में डाल दें।
हम भला क्यों डालते आँसू रहें।
वे कभी बात में नहीं आते।
लग गई हैं जिन्हें कि सच्ची धुन।
वे भला आप सूख जाते क्या।
मुख न सूखा जवाब सूखा सुन।
काल की परवाह बीरों को नहीं।
वह रहे उन को भले ही लूटता।
काम छेड़ा छूटता छोड़े नहीं।
टूटता है दम रहे तो टूटता।