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"जी की कचट / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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जो बड़े बेपीर को पिघला सके।
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जो बड़े बेपीर को पिघला सके।
 
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जाय टल जिस से बिपद बादल घिरा।
 
जाय टल जिस से बिपद बादल घिरा।
 
 
चाहिए जैसा गरम वैसा रहे।
 
चाहिए जैसा गरम वैसा रहे।
 
 
हम सके ऐसा कहाँ आँसू गिरा।
 
हम सके ऐसा कहाँ आँसू गिरा।
  
 
छोड़ दें आप अठकपालीपन।
 
छोड़ दें आप अठकपालीपन।
 
 
मत करें होठ काट काट सितम।
 
मत करें होठ काट काट सितम।
 
 
हो चुके काठ गाँठ का खोकर।
 
हो चुके काठ गाँठ का खोकर।
 
 
रो चुके आठ आठ आँसू हम।
 
रो चुके आठ आठ आँसू हम।
  
 
भर गये छलके अड़े उमड़े बहुत।
 
भर गये छलके अड़े उमड़े बहुत।
 
 
मोतियों के रंग में ढलते बढ़े।
 
मोतियों के रंग में ढलते बढ़े।
 
 
कर सके क्या, गिर गले, जल भुन गये।
 
कर सके क्या, गिर गले, जल भुन गये।
 
 
एक क्या सौ बार तो आँसू कढ़े।
 
एक क्या सौ बार तो आँसू कढ़े।
  
 
आँखवाले आँख भर कर हैं खड़े।
 
आँखवाले आँख भर कर हैं खड़े।
 
 
अब बढ़ी बेहूदगी से ऊब जा।
 
अब बढ़ी बेहूदगी से ऊब जा।
 
 
क्यों डुबाती जाति को है डाह तू।
 
क्यों डुबाती जाति को है डाह तू।
 
 
डबडबाये आँसुओं में डूब जा।
 
डबडबाये आँसुओं में डूब जा।
  
 
आदमीयत की अगर होती चली।
 
आदमीयत की अगर होती चली।
 
 
तो न अनबन आग जग देता जगा।
 
तो न अनबन आग जग देता जगा।
 
 
रंग लाती प्यार की रंगत अगर।
 
रंग लाती प्यार की रंगत अगर।
 
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हाथ जाता तो न लहू से रँगा।
हाथ जाता तो न लोहू से रँगा।
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हो रहा हे बेतरह बेचैन जी।
 
हो रहा हे बेतरह बेचैन जी।
 
 
सुधा हमारी बेसुधी है लूटती।
 
सुधा हमारी बेसुधी है लूटती।
 
 
देख कर कटता कलेजा जाति का।
 
देख कर कटता कलेजा जाति का।
 
 
फूटती हैं आँख, छाती टूटती।
 
फूटती हैं आँख, छाती टूटती।
  
 
झेलते झेलते मुसीबत को।
 
झेलते झेलते मुसीबत को।
 
 
हो गया नाक में हमारा दम।
 
हो गया नाक में हमारा दम।
 
 
हो गये काठ, बन गये पत्थर।
 
हो गये काठ, बन गये पत्थर।
 
 
थामते थामते कलेजा हम।
 
थामते थामते कलेजा हम।
  
 
दे जिन्हें मान मान मिलता है।
 
दे जिन्हें मान मान मिलता है।
 
 
मान हैं कर रहे उन्हीं का कम।
 
मान हैं कर रहे उन्हीं का कम।
 
 
देख यह हाल नौनिहालों का।
 
देख यह हाल नौनिहालों का।
 
 
थाम कर रह गये कलेजा हम।
 
थाम कर रह गये कलेजा हम।
  
 
अब उसे किस तरह जगायें हम।
 
अब उसे किस तरह जगायें हम।
 
 
जाग कर वह अगर नहीं जगता।
 
जाग कर वह अगर नहीं जगता।
 
 
क्या करें लोग बाग के हित में।
 
क्या करें लोग बाग के हित में।
 
 
लाग से दिल अगर नहीं लगता।
 
लाग से दिल अगर नहीं लगता।
  
 
सिर झुकाने से सका जितना कि झुक।
 
सिर झुकाने से सका जितना कि झुक।
 
 
झंझटें सह सैकड़ों झुकता गया।
 
झंझटें सह सैकड़ों झुकता गया।
 
 
जो कभी उकता, सका उकता नहीं।
 
जो कभी उकता, सका उकता नहीं।
 
 
अब वही दिल है बहुत उकता गया।
 
अब वही दिल है बहुत उकता गया।
  
तब भला वै+से पटाये पट सके।
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तब भला कैसे पटाये पट सके।
 
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जब कि उस से आज तक पाई न पट।
 
जब कि उस से आज तक पाई न पट।
 
 
वह चलाते चोट थकता ही नहीं।
 
वह चलाते चोट थकता ही नहीं।
 
 
चोट खा खा बढ़ गई जी की कचट।
 
चोट खा खा बढ़ गई जी की कचट।
  
 
देस का दुख बखानती बेला।
 
देस का दुख बखानती बेला।
 
 
किस तरह रुँधा गला नहीं जाता।
 
किस तरह रुँधा गला नहीं जाता।
 
 
जाति की देख कर भरी आँखें।
 
जाति की देख कर भरी आँखें।
 
 
जी रहा कौन सा न भर जाता।
 
जी रहा कौन सा न भर जाता।
  
 
देस पर जो निसार होते थे।
 
देस पर जो निसार होते थे।
 
 
हार अब वे रहे नहीं वैसे।
 
हार अब वे रहे नहीं वैसे।
 
 
पड़ गये कान में भनक ऐसी।
 
पड़ गये कान में भनक ऐसी।
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जायगा जी सनक नहीं कैसे।
  
जायगा जी सनक नहीं वै+से।
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क्या कुदिन अब सुदिन नहीं होगा।
 
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क्या वु+दिन अब सुदिन नहीं होगा।
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दिन ब दिन गात है लटा जाता।
 
दिन ब दिन गात है लटा जाता।
 
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नस गई सूख धँस गईं आँखें।
नस गई सूख धाँस गईं आँखें।
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पेट है पीठ से सटा जाता।
 
पेट है पीठ से सटा जाता।
  
 
काम जो आज कर रहे हैं हम।
 
काम जो आज कर रहे हैं हम।
 
 
कब गया वह कठिन नहीं माना।
 
कब गया वह कठिन नहीं माना।
 
 
साँसतें नित नई नई सह सह।
 
साँसतें नित नई नई सह सह।
 
 
है सहल पाँव का न सहलाना।
 
है सहल पाँव का न सहलाना।
 
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15:32, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

जो बड़े बेपीर को पिघला सके।
जाय टल जिस से बिपद बादल घिरा।
चाहिए जैसा गरम वैसा रहे।
हम सके ऐसा कहाँ आँसू गिरा।

छोड़ दें आप अठकपालीपन।
मत करें होठ काट काट सितम।
हो चुके काठ गाँठ का खोकर।
रो चुके आठ आठ आँसू हम।

भर गये छलके अड़े उमड़े बहुत।
मोतियों के रंग में ढलते बढ़े।
कर सके क्या, गिर गले, जल भुन गये।
एक क्या सौ बार तो आँसू कढ़े।

आँखवाले आँख भर कर हैं खड़े।
अब बढ़ी बेहूदगी से ऊब जा।
क्यों डुबाती जाति को है डाह तू।
डबडबाये आँसुओं में डूब जा।

आदमीयत की अगर होती चली।
तो न अनबन आग जग देता जगा।
रंग लाती प्यार की रंगत अगर।
हाथ जाता तो न लहू से रँगा।

हो रहा हे बेतरह बेचैन जी।
सुधा हमारी बेसुधी है लूटती।
देख कर कटता कलेजा जाति का।
फूटती हैं आँख, छाती टूटती।

झेलते झेलते मुसीबत को।
हो गया नाक में हमारा दम।
हो गये काठ, बन गये पत्थर।
थामते थामते कलेजा हम।

दे जिन्हें मान मान मिलता है।
मान हैं कर रहे उन्हीं का कम।
देख यह हाल नौनिहालों का।
थाम कर रह गये कलेजा हम।

अब उसे किस तरह जगायें हम।
जाग कर वह अगर नहीं जगता।
क्या करें लोग बाग के हित में।
लाग से दिल अगर नहीं लगता।

सिर झुकाने से सका जितना कि झुक।
झंझटें सह सैकड़ों झुकता गया।
जो कभी उकता, सका उकता नहीं।
अब वही दिल है बहुत उकता गया।

तब भला कैसे पटाये पट सके।
जब कि उस से आज तक पाई न पट।
वह चलाते चोट थकता ही नहीं।
चोट खा खा बढ़ गई जी की कचट।

देस का दुख बखानती बेला।
किस तरह रुँधा गला नहीं जाता।
जाति की देख कर भरी आँखें।
जी रहा कौन सा न भर जाता।

देस पर जो निसार होते थे।
हार अब वे रहे नहीं वैसे।
पड़ गये कान में भनक ऐसी।
जायगा जी सनक नहीं कैसे।

क्या कुदिन अब सुदिन नहीं होगा।
दिन ब दिन गात है लटा जाता।
नस गई सूख धँस गईं आँखें।
पेट है पीठ से सटा जाता।

काम जो आज कर रहे हैं हम।
कब गया वह कठिन नहीं माना।
साँसतें नित नई नई सह सह।
है सहल पाँव का न सहलाना।