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अब लगेगी न देर होने में। | अब लगेगी न देर होने में। | ||
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जब लगा हाथ लागवाले का। | जब लगा हाथ लागवाले का। | ||
वार तलवार कर पड़ें पिल हम। | वार तलवार कर पड़ें पिल हम। | ||
− | + | कूर को सूर साधना सिखला। | |
− | + | मोड़ कर मुँह मिजाज वालों का। | |
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दें मँजें हाथ के मजे दिखला। | दें मँजें हाथ के मजे दिखला। | ||
− | किस लिए | + | किस लिए कम हिम्मती से काम लें। |
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बैरियों को क्यों नहीं दे मारते। | बैरियों को क्यों नहीं दे मारते। | ||
− | + | कल् मरते आज क्यों जायें न मर। | |
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हाथ छाती पर अगर हैं मारते। | हाथ छाती पर अगर हैं मारते। | ||
चार बाँहें तो किसी के हैं नहीं। | चार बाँहें तो किसी के हैं नहीं। | ||
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क्यों सतायें दूसरे औ हम सहें। | क्यों सतायें दूसरे औ हम सहें। | ||
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क्यों रहे वे टूट पड़ते लूटते। | क्यों रहे वे टूट पड़ते लूटते। | ||
− | + | किस लिए हम कूटते छाती रहें। | |
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जो बुरी बातें बहुत ही खल चुकीं। | जो बुरी बातें बहुत ही खल चुकीं। | ||
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इस समय भी वैसिही के क्यों खलें। | इस समय भी वैसिही के क्यों खलें। | ||
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भाग को तो ठोंकते ही हम रहे। | भाग को तो ठोंकते ही हम रहे। | ||
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आज छाती ठोंक कर भी देख लें। | आज छाती ठोंक कर भी देख लें। | ||
वह करे सामने न मुँह अपना। | वह करे सामने न मुँह अपना। | ||
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जो करे सामना न नेजे का। | जो करे सामना न नेजे का। | ||
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क्यों बिना जान का बने कोई। | क्यों बिना जान का बने कोई। | ||
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जाय बन क्यों बिना कलेजे का। | जाय बन क्यों बिना कलेजे का। | ||
क्यों भला आसमान पर न चढ़ें। | क्यों भला आसमान पर न चढ़ें। | ||
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जब पतंगें चढ़ीें चढ़ाने से। | जब पतंगें चढ़ीें चढ़ाने से। | ||
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बढ़ करें क्यों न काम हम बढ़ बढ़। | बढ़ करें क्यों न काम हम बढ़ बढ़। | ||
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जाय बढ़ दिल अगर बढ़ाने से। | जाय बढ़ दिल अगर बढ़ाने से। | ||
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15:21, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण
काम में देर तब न कैसे हो।
दिल गया भूल भाग वाले का।
अब लगेगी न देर होने में।
जब लगा हाथ लागवाले का।
वार तलवार कर पड़ें पिल हम।
कूर को सूर साधना सिखला।
मोड़ कर मुँह मिजाज वालों का।
दें मँजें हाथ के मजे दिखला।
किस लिए कम हिम्मती से काम लें।
बैरियों को क्यों नहीं दे मारते।
कल् मरते आज क्यों जायें न मर।
हाथ छाती पर अगर हैं मारते।
चार बाँहें तो किसी के हैं नहीं।
क्यों सतायें दूसरे औ हम सहें।
क्यों रहे वे टूट पड़ते लूटते।
किस लिए हम कूटते छाती रहें।
जो बुरी बातें बहुत ही खल चुकीं।
इस समय भी वैसिही के क्यों खलें।
भाग को तो ठोंकते ही हम रहे।
आज छाती ठोंक कर भी देख लें।
वह करे सामने न मुँह अपना।
जो करे सामना न नेजे का।
क्यों बिना जान का बने कोई।
जाय बन क्यों बिना कलेजे का।
क्यों भला आसमान पर न चढ़ें।
जब पतंगें चढ़ीें चढ़ाने से।
बढ़ करें क्यों न काम हम बढ़ बढ़।
जाय बढ़ दिल अगर बढ़ाने से।