भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम मेरी विधवा आठ बरस से-2 / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |संग्रह=चलते-फिरते ढेले उपजाऊ मिट्टी...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKAnooditRachna | {{KKAnooditRachna | ||
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | ||
− | |संग्रह=चलते | + | |संग्रह=चलते फ़िरते ढेले उपजाऊ मिट्टी के / नाज़िम हिक़मत |
}} | }} | ||
[[Category:तुर्की भाषा]] | [[Category:तुर्की भाषा]] |
21:21, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण
|
उन्होंने हमें धर पकड़ा
डाल दिया कारागार में
- मुझे भीतर दीवारों के
- तुम्हें उनके बाहर ।
मेरी हालत उतनी बुरी नहीं है
उससे कहीं ज़्यादा ख़राब बात है
जाने या अनजाने
ढोना अपने भीतर कारागार को
ज़्यादातर लोग यही करते हैं आजकल
ईमानदार, मेहनती, भले लोग
और वे भी उतने ही हक़दार हैं प्यार के
जितनी तुम ।