"चार नाते / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | चाहिए था सींचना जल बन जिसे। | |
− | + | तेल वह उस के लिए कैसे बने। | |
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तब भला हम क्यों न जायेंगे उजड़। | तब भला हम क्यों न जायेंगे उजड़। | ||
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जब कि जोड़ई ही हमारी जड़ खने। | जब कि जोड़ई ही हमारी जड़ खने। | ||
घरनियाँ हैं सभी सुखों की जड़। | घरनियाँ हैं सभी सुखों की जड़। | ||
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रूठ सुख - सोत वे सुखायें क्यों। | रूठ सुख - सोत वे सुखायें क्यों। | ||
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निज कलेजा निकाल देवें जो। | निज कलेजा निकाल देवें जो। | ||
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वे कलेजा कभी कँपायें क्यों। | वे कलेजा कभी कँपायें क्यों। | ||
भूल जायें न नेकियाँ सारी। | भूल जायें न नेकियाँ सारी। | ||
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बाप के सब सलूक को सोचें। | बाप के सब सलूक को सोचें। | ||
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हो गईं रोटियाँ अगर महँगी। | हो गईं रोटियाँ अगर महँगी। | ||
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बेटियाँ तो न बोटियाँ नोचें। | बेटियाँ तो न बोटियाँ नोचें। | ||
वे पहन लें न, या पहन लेवें। | वे पहन लें न, या पहन लेवें। | ||
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चूड़ियाँ किस तरह मरद पहनें। | चूड़ियाँ किस तरह मरद पहनें। | ||
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नेह - गहने अगर पसंद नहीं। | नेह - गहने अगर पसंद नहीं। | ||
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चौंक पत्थर हमने न तो बहनें। | चौंक पत्थर हमने न तो बहनें। | ||
जो जिलायें उलझ न उलझायें। | जो जिलायें उलझ न उलझायें। | ||
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और बेअदबियाँ न सिखलायें। | और बेअदबियाँ न सिखलायें। | ||
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वे मुआ दें हमें जनमते ही। | वे मुआ दें हमें जनमते ही। | ||
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पर बलाये बनें न मातायें। | पर बलाये बनें न मातायें। | ||
दूसरे मोड़ मुँह भले ही लें। | दूसरे मोड़ मुँह भले ही लें। | ||
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माँ किसी की कभी न मुँह मोड़े। | माँ किसी की कभी न मुँह मोड़े। | ||
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रंग बदले तमाम दुनिया का। | रंग बदले तमाम दुनिया का। | ||
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देवतापन न देवता छोड़े। | देवतापन न देवता छोड़े। | ||
जब बदी पर कमर कसे घरनी। | जब बदी पर कमर कसे घरनी। | ||
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सुख फिरे किस तरह न कतराया। | सुख फिरे किस तरह न कतराया। | ||
− | + | तब भला वह सँभल सके कैसे। | |
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जब करे देह पर सितम साया। | जब करे देह पर सितम साया। | ||
मुँह सदुख ताक ताक बहनों का। | मुँह सदुख ताक ताक बहनों का। | ||
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तो न नाते तमाम क्यों रोवें। | तो न नाते तमाम क्यों रोवें। | ||
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चोर जी में अगर घुसे उन के। | चोर जी में अगर घुसे उन के। | ||
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जो सराबोर नेह में होवें। | जो सराबोर नेह में होवें। | ||
हित करें जो बेटियाँ हित कर सकें। | हित करें जो बेटियाँ हित कर सकें। | ||
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नित मचा कर दुंद वे न दुचित करें। | नित मचा कर दुंद वे न दुचित करें। | ||
− | + | तब भला कैसे ठिकाने चित रहे। | |
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जब हमें चित की पुतलियाँ चित करें। | जब हमें चित की पुतलियाँ चित करें। | ||
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19:33, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
चाहिए था सींचना जल बन जिसे।
तेल वह उस के लिए कैसे बने।
तब भला हम क्यों न जायेंगे उजड़।
जब कि जोड़ई ही हमारी जड़ खने।
घरनियाँ हैं सभी सुखों की जड़।
रूठ सुख - सोत वे सुखायें क्यों।
निज कलेजा निकाल देवें जो।
वे कलेजा कभी कँपायें क्यों।
भूल जायें न नेकियाँ सारी।
बाप के सब सलूक को सोचें।
हो गईं रोटियाँ अगर महँगी।
बेटियाँ तो न बोटियाँ नोचें।
वे पहन लें न, या पहन लेवें।
चूड़ियाँ किस तरह मरद पहनें।
नेह - गहने अगर पसंद नहीं।
चौंक पत्थर हमने न तो बहनें।
जो जिलायें उलझ न उलझायें।
और बेअदबियाँ न सिखलायें।
वे मुआ दें हमें जनमते ही।
पर बलाये बनें न मातायें।
दूसरे मोड़ मुँह भले ही लें।
माँ किसी की कभी न मुँह मोड़े।
रंग बदले तमाम दुनिया का।
देवतापन न देवता छोड़े।
जब बदी पर कमर कसे घरनी।
सुख फिरे किस तरह न कतराया।
तब भला वह सँभल सके कैसे।
जब करे देह पर सितम साया।
मुँह सदुख ताक ताक बहनों का।
तो न नाते तमाम क्यों रोवें।
चोर जी में अगर घुसे उन के।
जो सराबोर नेह में होवें।
हित करें जो बेटियाँ हित कर सकें।
नित मचा कर दुंद वे न दुचित करें।
तब भला कैसे ठिकाने चित रहे।
जब हमें चित की पुतलियाँ चित करें।