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हमारी देवियाँ / हरिऔध

15 bytes removed, 14:05, 23 मार्च 2014
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जाति की, वु+ल कुल की, धारम धरम की, लाजकी।लाज की।बेतरह ये ले रही हैं फबतियाँ। 
हैं लगाती ठोकरें मरजाद को।
देवियाँ हैं याकि ये हैं बीबियाँ।
देवियाँ हैं याकि ए हैं बीबियाँ। हम उन्हें तब देवियाँ वै+से कैसे कहें। 
बेतरह परिवार से जब तन गईं।
 
बीबिआना ठाट है बतला रहा।
 
आज दिन वे बीबियाँ हैं बन गईं।
चूस करके सब सलूकों का लहू।
 
नेह-साँसें चाव से गिनने लगीं।
 तब भला न मसान घर वै+से कैसे बने। 
डायनें जब देवियाँ बनने लगीं।
क्या न है फेर यह समय का ही।
 
देवियाँ जाँय जो चुड़ैलें बन।
 
नाम के साथ वे लिखें देवी।
 
जो रखें नाम को न देवीपन।
सब घरों को दें सरग जैसा बना।
 
लाल प्यारे देवतों जैसा जनें।
 
अब रहे ऐसे हमारे दिन कहाँ।
 
देवियाँ जो देवियाँ सचमुच बनें।
</poem>
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