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"जब चाहा तलवार समझकर मुझको इस्तेमाल किया / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी" के अवतरणों में अंतर
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जब चाहा तलवार समझकर मुझको इस्तेमाल किया | जब चाहा तलवार समझकर मुझको इस्तेमाल किया | ||
− | हाक़िम ही क्या दुनिया भर ने मेरा इस्तेह्साल <ref> हासिल करना,प्राप्त करना | + | हाक़िम ही क्या दुनिया भर ने मेरा इस्तेह्साल<ref>हासिल करना,प्राप्त करना</ref>किया |
गुलशन पर जो कुछ बीती है कोई पूछे तो बतलाएँ | गुलशन पर जो कुछ बीती है कोई पूछे तो बतलाएँ | ||
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09:55, 25 मार्च 2014 का अवतरण
शब्दार्थ
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जब चाहा तलवार समझकर मुझको इस्तेमाल किया
हाक़िम ही क्या दुनिया भर ने मेरा इस्तेह्साल<ref>हासिल करना,प्राप्त करना</ref>किया
गुलशन पर जो कुछ बीती है कोई पूछे तो बतलाएँ
बादल ने क्या गुन बरसाए मौसम ने क्या हाल किया
सूरज ने फैला दीं किरनें शबनम की नाबूदी पर
मौक़ा पाकर शबनम ने भी सब्ज़े को पामाल किया
आवारा ख़ुश्बू से उसने हम तक पहुँचाया पैग़ाम
हमने भी तितली के हाथों इक नामा इरसाल किया
जीवन के ताने बाने में यूँ ही क्या कम उलझन थी?
फिर अपना हमज़ाद जगा कर क्यों जी का जंजाल किया
हम तो बर्ज़ख़ हो या जन्नत उसकी मर्ज़ी में ख़ुश हैं
जिसको दोज़ख़ <ref> नर्क</ref> में रहना है उसने क़ीलो-क़ाल <ref>तर्क-वितर्क</ref> किया
शब्दार्थ
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