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Kavita Kosh से
बादल गुज़रते हैं : ख़बरों से लदे हुए । भारी
तुम्हारी वह चिट्टी चिट्ठी जो अभी मिली नहीं मुझे, उसे गुड़ी-मुड़ी करता हूँ
दिल के आकार की बरौनियों की नोकों पर :