भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम मेरी विधवा आठ बरस से-5 / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |संग्रह=चलते-फिरते ढेले उपजाऊ मिट्टी...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKAnooditRachna | {{KKAnooditRachna | ||
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | ||
− | |संग्रह=चलते | + | |संग्रह=चलते फ़िरते ढेले उपजाऊ मिट्टी के / नाज़िम हिक़मत |
}} | }} | ||
[[Category:तुर्की भाषा]] | [[Category:तुर्की भाषा]] |
21:21, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण
|
पेटी से निकालो वह घाघरा
जिसमें मैंने देखा था तुम्हें पहली बार,
और बालों में लगाओ वह कारनेशन
जो तुम्हें भेजा था मैंने जेल से
चाहे जितना बिखरा, मुरझा चुका हो ।
सँवरो और खिली दिखो
आदमकद वसन्त-सी ।
आज के रोज़ दिखना नहीं चाहिए तुम्हें
खोई-खोई ग़मगीन
किसी हाल में !
आज के दिन
- तुम्हें निकलना चाहिए सर ऊँचा किए हुए
- गर्वोन्नत
- गुज़रना ही चाहिए तुम्हें नाज़िम हिक़मत की
- पत्नी की गरिमा से भर के ।