भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धुंध में औरत / सुमन केशरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:19, 31 मार्च 2014 के समय का अवतरण

चीरती धुंध को
निकलती है एक अस्पष्ट आकृति
खुद को समेटे
चौकन्नी सी
अपने पूरे वजूद से आहटों को सुनती
बेआवाज तेज कदम उठाती
बढ़ती है औरत
धुंध से धुंध तक
चीरती हुई
धुंध।

कुछ आहटें हैं पास
कहकहे लगातीं, आवाजें कसतीं
बुलातीं, मनुहार करतीं


काँपता है तन
पत्ते सा पतझर में

मन को समेटती
अपने पूरे वजूद से आहटों को सुनती
बेआवाज तेज कदम उठाती
जा छिपती है औरत
धुंध में।