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"मिस्टर के की दुनिया: पेड़ और बम-७ / गिरिराज किराडू" के अवतरणों में अंतर

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12:16, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

घड़ियों से प्रेम मत करो
ट्रेनों से उससे भी कम
और भाषा से सबसे कम
जिस भाषा में तुम रोते हो वही किसी का अपमान करने की सबसे विकसित तकनीक है

तुम भाषा की शर्म में रहते हो
और वे चीख रहे हैं गर्व में
तुम्हारे पास अगर कुछ है तो अपने को बम में बदल देने का विकल्प
और तुम अभी भी सोचते हो बम धड़कता नहीं है
तुम अपने सौ एक सौ अस्सी के रक्तचाप को सम्भाल के रक्खो

एक हिंसक मौत की कामना हर अहिंसक की मजबूरी है
इसीलिये मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है

घड़ी देखो और अपने रक्तचाप में डूब मरो