"हाथ और तलवार / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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15:15, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
खेलने पर के भरोसे क्या लगे।
किस लिए हो भेद अपना खोलते।
तोल तुम ने क्यों न अपने को लिया।
हाथ तुम तलवार क्या हो तोलते।
हाथ में तो तमकनत कम है नहीं।
पर गईं बेकारियाँ बेकार कर।
ताब तो है वार करने की नहीं।
वार जाते है मगर तलवार पर।
जो रसातल जाति को हैं भेजते।
क्यों न उन की आँख की पट्टी खुले।
जो कि सहलाते सदा तलवा रहे।
हाथ क्यों तलवार ले उन पर तुले।
जब समय पर जाय बन बेजान तन।
ताब हाथों में न जब हो वार की।
तल बिचल हो जाय जब तिल आँख के।
क्या करेगी धार तब तलवार की।
वह कहाँ पर क्या सकेगी कर नहीं।
साहसी या सूरमा के साथ से।
है हिला देती कलेजे बेहिले।
चल गये तलवार हलके हाथ से।
सब बड़े से बड़े लड़ाकों को।
हैं दिये बेध बेध बरछी ले।
फेर तलवार फेर में डाला।
कर सके क्या न हाथ फ़ुर्तीले।