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"हमारे मालदार / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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15:32, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

क्या कहें हाल मालदारों का।
माल से है छिनाल घर भरता।
काढ़ते दान के लिए कौड़ी।
है कलेजा धुकड़ पुकड़ करता।

किस तरह तब मान की मोहरें मिलें।
उलहती रुचि बेलि रहती लहलही।
देख कौड़ी दूर की लाते हमें।
जब मची हलचल कलेजे में रही।