भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छुट्टियाँ होती हैं लेकिन / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |संग्रह=कविता लौट पड़ी / कैलाश गौतम }} छुट्टि...)
(कोई अंतर नहीं)

19:40, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण

छुट्टियाँ होती हैं लेकिन
क्या बतायें छुट्टियों में हम
अब नहीं घर से निकलते
रंग लेकर राग लेकर
एक आदिम आग लेकर
मुट्ठियों में हम।

धूप-झरना, फूल-पत्ते
गुनगुनाती घाटियाँ
ले गईं सब कुछ उड़ाकर
सभ्यता की आंधियाँ
घर गृहस्थी दोस्त दफ्तर
बोझ सब लगते समय पर
जी रहे बस औरचारिक
चिट्ठियों में हम।

कल्पनायें प्रेम की
संवेदनायें प्रेम की
विज्ञापनों में आ गईं
सारी ऋचायें प्रेम की
थे गीत-वंशी कहकहे
क्या-क्या नहीं भोगे सहे
ईंधन हुये
कैसा समय की
भट्ठियों में हम।