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"बसंत बयार / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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15:49, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
फूल है घूम घूम चूम रही।
है कली को खिला खिला देती।
है महक से दिसा महकती सी।
है मलय-पौन मोह दिल लेती।
है सराबोर सी अमीरस में।
चाँदनी है छिड़क रही तन पर।
धूम मह मह महक रही है वह।
बह रही है बसंत की बैहर।
मंद चल फूल की महक से भर।
सूझती चाल जो न भूल भरी।
आँख में धूल झोंक धूल उड़ा।
तो न बहती बयार धूल भरी।
फूल को चूम, छू हरे पत्ते।
बास से बस जगह जगह अड़ती।
जो न पड़ती लपट पवन ठंढी।
तो लपट धूप की न पट पड़ती।