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21:49, 2 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
बिलकिस निज़ार कब्बानी का शोक-गीत है जो उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति में लिखा है। बिलकिस निज़ार कब्बानी की दूसरी पत्नी थीं जिन्हें कब्बानी ने टूटकर प्रेम किया। वह इराकी थीं और अधेमीय की रहने वाली थी पन्द्ररह दिसम्बर १९८२ को लेबनान के गृहयुद्ध में बेरूत में बम गिरने से उनकी मृत्यु हुई।
कविता केवल पत्नी की स्मृतियों में लिखा मर्सिया नहीं है, वह कवि का अपने भयवाह समय को देखना है। यह कवि का करुण-क्रन्दन नहीं, बल्कि एक सोए हुए देश में गुम संस्कृतियों का उत्खनन है.. कि वह बार-बार दासत्व और हिंसा के बीच संघर्षरत है, कि वह बार-बार अपनी हड्डियों तक समाए दर्द से विचलित दिखाई देता है।
बिलकिस:
शुक्रिया
शुक्रिया तुम सभी का
मेरी बिलकिस के क़त्ल का शुक्रिया ।
जाओ पियो जी भरकर
शहीदों की क़ब्र पर ...
मेरी कविता का क़त्ल हुआ
ये कोई और मुल्क नहीं
मेरा अपना ही मुल्क है जिसने क़त्ल किया कविता का !
बिलकिस
बैबल की रानियों में सबसे हसीन थी वो
बिलकिस
इराकी खजूरों से भी ऊँची
उसकी चाल कैसी मोहक
जैसे चल देंगे पीछे-पीछे हिरण और मोर
बिलकिस.. तुम मेरा दर्द
तुम, अँगूठे के नीचे मसली कविता का दर्द
कैसे फूट सकतें हैं ज़मीन से किल्ले
जबकि तुम्हारे बाल गल रहे हों ?
ओ सुहावने हरे निनेवा
मेरे भूरे बालों वाले यायावर प्रदेश
वसन्त में
टिगरिस की लहरों से
सबसे सुन्दर कंगना बँधवाने वाले...
ओह ! उन सबने तुम्हारा क़त्ल किया
कैसा है देश
अरब का
कैसे मना सकता है कोई जश्न
बुलबुल की हत्या पर
कहाँ गुम हुए वे -- अल-सामावल
और अल-मुहालहिल
दरियादिल ज़हीन हमारे रहनुमा ?
खा रहे हैं कबीले कबीलों को
साँपों ने वध कर दिया है साँपों का
मकड़ियों की हत्या कर रही हैं मकड़ियाँ
तुम्हारी उन आँखों की क़सम
जहाँ बसते हैं लाखों सितारे एक साथ
कि मेरी जान
सुनाऊँगा मैं दुनिया को
अरब की शर्मनाक कहानियां
क्या बहादुरी अरब का झूठ है अब?
या हमारी तरह ही झुठला देगा इतिहास
साहस की कथाएँ सब ?
बिलकिस
अब कभी न मिलेगा चैन
न ही सूरज दमकेगा सागर किनारों पर
तहकीकात के बाद
मैं कहूँगा कि
कि योद्धाओं की जगह ले चुके हैं चोर
मैं कहूँगा कि
प्रतिभावान रहनुमा अब ठेकेदार हैं
मैं कहूँगा कि
रौशनी की कहानियां हमारे समय का भयावह मजाक हैं
हम अब भी गुलाम जातियों का एक कुटुंब हैं
बिलकिस- यह इतिहास का दागदाग चेहरा है
कैसे कोई जानेगा
बागीचे और कूड़ेदान में अंतर?
बिलकिस
तुम शहीद ,एक कविता तुम
पाकीज़ और ईमानदार
तुम्हारी ही खोज में निकल पड़े हैं शेबा के लोग
लौट आओ और करो स्वागत उनका
ओ बेगमों की बेगम
औरत,सशरीर जिसके भीतर जिंदा रहा
सुमेरिया का हर युग
बिलकिस..
तुम्हारा स्वाद ..
उस जैसा ... उस जैसा और कोई नहीं परिंदा
तस्वीरों में तुम बेशकीमती
मैगडेलिन के गालों पर ढुलकते आंसुओं सी प्यारी
क्या ज़ुल्म नहीं था मेरा तुम पर
ब्याह लाया जब मैं तुम्हें अधेमीयाह के किनारों से?
हममें से किसी एक को रोज़ मारता है बैरुत
रोज़ होती है एक मौत -
कॉफ़ी के कप में
दरवाज़े की चाबी में
कोठे के फूलों में
कागजों में
हर्फ़ -ए -तहज़ी में
बिलकिस
वहीँ लौट आये हैं हम
उसी जहिलिया को
उसी जाहिलपन में
वही पसमांदगी, हैवानियत वही नीचता
लौट आये हैं हम उसी बर्बरता को
जहाँ लिखने के मायने थे -
टुकड़ों के बीच का सफ़र
जहाँ हर हाल में तितलियाँ खेतों में मारी जानी थीं
क्या जानती हो बालकिस, मेरी जान तुम इसे .
क्या तुम जानते हो मेरी प्यारी बालकिस को ?
मुहब्बत की किताबों में उसका होना सबसे जरुरी है
सख्त और नरम का अनोखा जोड़ थी वो
हमेशा चमकता था उसकी आँखों में वह रंग
बनफशा .
बालकिस
मेरी यादों में सबसे भाग्यवान तुम ही तो थीं
धुंध में कब्र का सफ़र थीं तुम
जबह कर दी गईं तुम जैसे आवाज़ करने से पहले
जबह किया जाता है हिरण बैरुत में .
बिलकिस
मर्सिया नहीं है ये
अरब के एक युग को
अलविदा कहना है पर.
बिलकिस
हम सब हमेशा लालायित रहेंगे तुम्हारे लिए
और ये नन्हा घर पूछता रहेगा
खुशबुओं वाली अपनी शहजादी का अता-पता .
हम खबरें सुनतें हैं .कितनी रहस्यपूर्ण हैं ये
हर वक्त का तजस्सुस जैसे.
बिलकिस हड्डियों के भीतर तक
दर्द बर्दाश्त करते हम .
बच्चे नहीं जानते कि क्या हो रहा है
मैं नहीं जानता क्या बताना है तब .
क्या थोड़ी देर में दरवाजे पर दस्तक दोगी तुम?
क्या सर्दियों के कोट को उतार जाओगी ?
क्या मुस्कराती आओगी
जैसे दमकते हैं फूल खेतों में .
बिलकिस..
तुम्हारे रोपे वे पौधे हरे-भरे
अब भी मुंडेर पर हैं, मर्सिया पढ़ते.
तुम्हारा चेहरा अब भी भटक रहा है
आइनों और पर्दों के बीच
तुम्हारी सुलगाई सिगरेट
अब भी दमक रही है
और झूल रहा है
धुआं उसका .
बिलकिस हमारे दिल दुखी हैं
सदमे से गूंगे हो चुके हैं हम .
बिलकिस
कैसे ले उड़ीं तुम मेरे दिन और मेरे ख्वाब.
और बगीचे ,तमाम मौसम लांघ चली गईं तुम कहाँ?
ओह!मेरी बीबी
मेरा प्यार,कविता मेरी,आँखों की रौशनी
तुम मेरी खूबसूरत चिड़िया .
बिना कुछ कहे कैसे छोड़ गईं तुम मुझे ?
बिलकिस
देखो खुशबूदार इराकी चाय के भंडार का मौसम है ये
मेरी जिराफ कौन परोसेगा इसे दिलकशी के साथ ?
कौन लाएगा फिरात को अपने घर तक?
कौन विचलित करेगा रेसाफा और दजला के फूलों को ?
बिलकिस
गहरा दुःख व्याप गया है मुझमें
बैरुत ने मार डाला तुम्हें
अपने इस जुर्म को कभी नहीं जानेगा वह
बैरुत ने तुम्हें किया प्यार,लेकिन
अपने ही चाहने वालों के क़त्ल को न कर सका नज़रंदाज़ .
और बुझा दी उसने हमेशा के लिए अपनी चांदनी
बिलकिस
ओह! बिलकिस
ओह! बिलकिस..
तुम्हारे लिए हर बादल में जैसे तुम्हारा ही विलाप है
मेरे लिए रोयेगा कौन भला ?
बिलकिस कोई इशारा तक नहीं
और छोड़ चलीं तुम हमें !
बिना मेरे हाथों में डाले अपना हाथ ?
बिलकिस ..
कांपते पत्तों के मानिंद
हवाओं में कांपने को क्यों छोड़ गईं हमें
हम तीनों को कहाँ छोड़ गईं तुम -हम गुम
ऐसे जैसे बरसात में पंख
क्या तुमने नहीं सोचा मेरे बारे में;तुम्हारा प्रेमी मैं ?
मुझे चाहिए तुमसे उतना ही प्यार
जितना चाहा था ज़िनाब या ओमार ने.
बिलकिस
तुम अलौकिक कोष
एक बरछी इराकी
एक बांस का जंगल
सितारों को उनकी शान -ओ-शौकत में ललकारती हुई तुम
कहाँ से पायी तुमने इतनी ताकत ?
बिलकिस
मेरी दोस्त,साथी मेरी
शालीन गुलदाउदी के फूल सी तुम
न तो बैरुत और न समंदर के पास थी जगह तुम्हारे लिए
और न ही कोई मुनासिब जगह हो ही सकती थी
बिलकिस,तुम्हारे लिए
क्योंकि तुम ठहरीं यगां,जुदा दुनिया से।
बिलकिस
जब भी तफसील करता हूँ अपने रिश्ते की
खून से लिथड़ी यादें संतप्त करती हैं मुझे
और झूल जाता है समय भारी
सख्त जैसे कीलें .
हर छोटे से छोटा बालों का पिन
जैसे कहता है तुम्हारी ही कथा।
तुम्हारे बालों का वह सुनहरी क्लिप
अकसर अभिभूत करता है मुझे
ऐसे जैसे कोई नाज़ुक सी लहर .
वह सुरीली इराकी आवाज़
आराम कर रही है यहाँ -
पर्दों पर
कुर्सियों पर
छुरी -काँटों पर।
तुम आती हुई दीखती हो -
घर के आइनों से
छल्लों से
कविताओं से
शमां से
प्यालों से
जामुनी शराब से
ओह बिलकिस.. ओह बिलकिस
तुम केवल तुम जान सकती हो
वह दुःख जो उन सब जगहों से मुझ तक आता है
जहाँ -जहाँ तुम्हारा होना बसा है .
हर कोने में तुम्हारी रूह उडती है चिड़िया बनकर -
फ़ैल जाती हो तुम हर जगह जैसे बेलसान के जंगलों की खुशबू
तुम आती हो हर जगह
वहां जहाँ तुम उड़ातीं थीं
धुंआ सिगरेट का
जहाँ तुम पढ़ती थीं किताबें
जहाँ तुम खड़ी हो ऐसे जैसे फक्र करते ताड़ के पेड़
तुम आती हो केश संवारतीं
मेहमानों के स्वागत में
उठती हो जैसे फुर्तीली यमन की तलवार .
कहाँ है वह तुम्हारी गुरलैन की बोतल ?
वह नीली रौशनी
हमेशा होंठों में दबी वह केंट की सिगरेट
कहाँ है वह हाशमी चिड़िया जो गाया करती थी
तुम्हारे रुतबे के गीत
जब कभी याद करेंगे तुम्हें शहद से भरे छत्ते
ढुलक ही जायेंगे उनकी कोरों से आसूं
क्या उनका दुःख वैसा न होगा
जैसा महबूब का विसाल में ?
बिलकिस कैसे हो सकता हूँ मैं निठुर ?
जबकि घिरा हूँ मैं आग और धुंए से घिरी ज़ुबानों में
बिलकिसमेरी शहजादी
तुम जल रही हो कबीलाई-कबीलाई जंगों में
अपनी रानी की हत्या के लिए मैं और क्या लिखूं?
मेरी कविता और कुछ नहीं बल्कि मेरा ही मन है
मजलूम के ढेर में देखना एक टूटते तारे को
एक देह का आईने की तरह टूट जाना
मुझे डर है कि ये कब्र तुम्हारी है या अरब की ....
ओह बिलकिस शाहबलूत के पेड़ों जैसी हसीना
तुम्हारी जुल्फें मेरे कन्धों पर सोयी पड़ी हैं
और तुम चल रही हो शान से
ऐसे जैसे जिराफ
बिलकिस ये अरब के लोगों की किस्मत है
कि उन्हें अपनों से ही मारे जाना है
अपनों से ही निगले जाना है
खोदे जाना है अपनों से
कैसे बच सकते हैं भला हम अपनी तकदीर से?
अरब की छुरी वही
सबके लिए एक सी
चाहे शरीफ आदमी हो या औरत खुदमुख्तार
और बिलकिस अगर तुम इसका होती हो शिकार
तो याद रहे कि
सभी मातम कर्बला से शुरू होते हैं
और खत्म भी वहीँ पर .
इसने आगाह किया है -
कि अब और इतिहास जानने की जरुरत नहीं रही
मेरी उँगलियाँ जल चुकी हैं
और मेरे कपडे खून से लथपथ
हम अब भी पाषाण युग में हैं
हर दिन ले जाता है हमें कई युग पीछे .
तुम्हारे जाने के बाद
बैरुत में नहीं बचेगा समंदर
अधूरे हर्फों में
कविता कविता से पूछेगी प्रश्न
और कोई उत्तर न होगा .
दुःख और संताप में मेरा दिल बह चला है
जैसे निचोड़ दी गई है नारंगी की फांक
मैं जानने लगा हूँ अब
शब्दों का दुःख
एक असम्भव भाषा का हाल
भूल चुका हूँ कि कहाँ से शुरू करूँ इसे ?
जबकि मैं खुद ...अक्षरों को ढालने वाला
मेरी छाती के आर-पार है एक कटार
और वहीँ कहीं छूट गए हैं मेरे वाक्य मुझसे.
बालकिस तुम ही तहजीब हो
स्त्री के रूप में उतरी तहजीब .
ओ मेरी शगुनों की शगुन
किसने की तुम्हारी हत्या?
तुम ही तो आदिम रूप हो भाषा का .
तुम्हीं वह द्वीप ,वह रौशनी की मीनार ..
बिलकिस...
बिलकिस तुम्हीं हो वह चकवी पत्थरों के नीचे दबाई गईं
तोडूंगा मैं इसे
तोडूंगा मैं इसे ....
तफ्तीश के वक्त मैं कहूँगा -
मैं जानता हूँ नाम ...वे चीज़ें ...
वे कैदी ...वे शहीद ..वे गरीब
और वे मजबूर
मैं बता दूंगा हत्यारे का नाम जिसने मेरी पत्नी के सीने में
उतारी थी कटार
मैं पहचानता हूँ उन सबके चेहरे ..
मैं कहूँगा कि हमारा सच अब विलासिता के सिवा कुछ नहीं
और हमारी शुचिता एक दुष्कर्म
मैं कहूँगा कि हमारे संघर्ष मिथ्या हैं
और राजनीति अस्मत फरोशी का पर्याय
तहकीकात होगी और मैं बता दूंगा ...
मैं जानता था हत्यारों को
मैं कहूँगा
कि हमारे समय को महारत हासिल है चमेली की हत्या में
खुदा के रसूलों
तमाम पैगम्बरों को
यहाँ तक कि हरी आँखों को निगल सकता है अरब
निगल सकता है जुल्फें ,अंगूठियाँ ,कंगन ,दर्पण,खिलौने ...सब
अब सितारे भी डरने लगे हैं मेरे वतन से
कारण क्या कहूँ ?नहीं जानता ?
चिड़ियाँ उड़ चुकी हैं
और मैं नहीं जानता ?
यहाँ तक कि सितारे ,कश्तियाँ और बादल
यहाँ तक कि कोपियाँ ,किताबें
और हर वह चीज़ जो सुन्दर है
अरब के खिलाफ है ...
बिलकिस...
जब फरिश्तों जैसी तुम्हारी देह
जिसमें दमकते थे मोती
बिखर गई थी
तब मैं हैरान था ...क्या औरत को मारना अरब का शौक है ?
या किसी अपराध के चौपार का हम आदिम हिस्सा हैं ? बालकिस ..
मेरी सुन्दर घोड़ी ..
शर्मसार हूँ अपने इतिहास पर ,एक लम्बा दुस्वप्न
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े ....
तब तक जब तक तुम्हारा क़त्ल न हो जाए .. बिलकिस.
ओ मेरे प्रियतम देश
कोई कैसे खड़ा हो तेरे सामने !
कैसे कोई रहे यहाँ इस देश में ?
कोई कैसे मरे इस देश में ?
मेरे पसीने से खून टपक रहा है
और इसने चुकाई है आखिरी कीमत -
दुनिया को खुश करने की .
मेरे खुद ये तेरा ही निपटारा है
कि किया है तूने मुझे सर्दियों के पत्तों की तरह तनहा.
क्या कवि शोक गीत के लिए हुए हैं पैदा ?
या कविता एक हूल दिल में
कभी न मिटनेवाली.
या मैं अकेला ही चीख रहा हूँ ?
बिना आंसुओं के बह रही है ..तवारीख
तहकीकात के समय
मैं कहूँगा
कि कितनी हिरणियों को मारा था अबी लहाब के खंजर ने
खाड़ी से समंदर तक सभी चोर :
मिटाते गए और जलाते गए
लूटते गए,खरीदते गए
और करते रहे बलात्कार औरतों का
जैसा अबू लहाब ने चाहा
कुत्तों को दी गई मुलाज़िमत
मौज करते ..खाते -पीते
वे शामिल रहे अबू की दावत में .
अबू के इंकार पर कोई पैदा नहीं कर सकता था गेहूं
कोई संतान जन्म नहीं ले सकती थी
जब तक कोई औरत अबी की हमबिस्तर न हो जाए
कोई कैद न खुली थी
अबी के हुक्म बिना
अबी के हुक्म के बिना कौन काट सकता था सिर ?
तहकीकात के समय मैं बताऊंगा
कितनी शहजादियों के संग हुआ बलात्कार
कैसे उन्हें करनी पड़ीं साझा
अपनी पिरोजा हरी आँखें
और अपनी ब्याह की अंगूठी ...भी
मैं बताऊंगा कैसे साझा किये उन्होंने
अपने लम्बे सुनहरी बाल
तश्तीफ के समय मैं बताऊंगा सब
कि कैसे वे झपटे थे उनकी पाक कुरआन पर
और लगा दी थी उसमें आग
मैं बताऊंगा कि
कैसे हुई लहूलुहान वे
कैसे बंद किये गए उनके मुख
न गुलाब बचे ,न अंगूर ...
बिलकिस का क़त्ल क्या अकेली जीत थी
अरब के इतिहास में?
बालकिस ,
मेरे जीवन का प्यार
झूठ बोलने वाले पैगम्बर
बैठे हैं लोगों के सिर पर
उनके पास देने को कोई संदेस नहीं ..
काश वे जी उठते एक बार
दुखी फिलिस्तीन में
लौटा सकते वह सितारा
नारंगी ..
लौटा सकते गाज़ा के किनारों की
बिल्लौरी सीपियाँ
कि लौटा सकते शताब्दी के चौथाई हिस्से से
गुलाम जैतूनों की आज़ादी
या इतिहास के दाग मिटाने के लिए
वे बचा पाते नीबू
मेरी जिन्दगी ,मेरी जान बालकिस
शुक्रिया अदा करता हूँ उनका
कि फिलिस्तीन के बदले उन्होंने हत्या की तुम्हारी
हत्या मेरी जान की ...
इस समय में कविता कहे भी तो क्या कहे?
क्या कहे कविता
घोर अनैतिक युग में
डरे हुए समय में ?
अरब की दुनिया कुचल दी गई है
कुचल दी गई है
और मुंह पर जड़ दी गई है उसके सील
जुर्म की बेहतरीन मिसाल हैं हम
तो क्या फर्क पड़ता है अल इक्द अल फरीद या अल अघानी लिखे होने से ?
उन्होंने तुम्हें छीन ही लिया मुझसे
जबकि हम थामे थे एक दूसरे का हाथ
मुझे अवाक छोड़कर बदले में पायी उन्होंने मेरी कविता
पाया उन्होंने लिखना-पढना
बचपन ,इच्छाएँ…
बिलकिस बिलकिस
मेरे वायलिन के तारों पर छलक आये हैं तुम्हारे आंसू
तुम्हारी मुहब्बत के राज़ मैं उन्हें सिखाता
पर रास्ता खत्म होने से पहले ही
मार दिया उन्होंने मेरा घोडा
बालकिस माफ़ी मांगता हूँ मैं
कि मेरी जिन्दगी का होना तुम्हारी क़ुरबानी मांगता था
जबकि मैं जानता हूँ
तुम्हारे हत्यारे मेरी कविता का कत्ल चाहते थे
मेरी सुन्दर महबूबा
तुम सो रही हो
सो रही हो आराम से
जबकि तुम्हारे बाद
रुक जायेगी कविता
स्त्रीत्व का सही ठिकाना न होगा
जानवरों के झुण्ड की तरह बची रहेगी
बच्चों की नस्ल
और पूछती रहेगी तुम्हारे लम्बे बालों के बारे में
प्रेमियों की पीढियां
तुम्हारे बारे में पढ़ेंगी :तुम ठहरीं उनकी उस्ताद
एक दिन अरब जान जायेगा
कि उसने क़त्ल किया अपनी पैगम्बर का
कि क़त्ल किया पैगम्बर का
पैगम्बर का क़त्ल .
____________
सामावल और अलमुहालहिल ऐतिहासिक चरित्र हैं जो अपनी बहादुरी और दरियादिली के लिए जाने जाते थे ।
जहिलिया अरब का वह आदिम युग है जब मूर्तिपूजा प्रचलित थी ।
जैनब और ओमार निजार और बिलकिस की सन्तानें हैं ।
अल हाशमी को यासेर अमन ने बुलबुल की तरह गाने वाली चिड़िया माना है ।
अबू लहाब का अँग्रेज़ी में शाब्दिक अर्थ ’नरक के पिता’ के रूप में मिलता है। अबू लहाब ऐतिहासिक चरित्र है जो इस्लाम से नफ़रत करता था। कविता में एक रुपक की तरह कवि ने इस चरित्र को खड़ा किया है ।