भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपने गर्भाशय के लिए कविता / लूसिलै क्लिफ्टन / प्रेमचन्द गांधी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लूसिलै क्लिफ्टन |अनुवादक= प्रेमच...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:31, 4 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
अरे गर्भाशय तुम
तुम तो बहुत ही सहनशील रहे हो
जैसे कोई ज़ुराब
जबकि मैं ही तुम्हारे भीतर सरकाती रही
अपने जीवित और मृत शिशु और
अब वे ही काट फेंकना चाहते हैं तुम्हें
जहां मैं जा रही हूं वहां
अब मुझे लम्बे मोजों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
कहां जा रही हूं मैं बुढ़ाती हुई लड़की
तुम्हारे बिना मेरे गर्भाशय
ओ मेरी रक्तरंजित पहचान
मेरी एस्ट्रोजन रसोई
मेरी कामनाओं के काले झोले
मैं कहां जा सकती हूं
तुम्हारे बिना
नंगे पांव और
कहां जा सकते हो तुम
मेरे बिना