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"खच्‍चर / जेन स्प्रिंगर / प्रेमचन्द गांधी" के अवतरणों में अंतर

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16:40, 4 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

जब उन्‍होंने कहा कि मत बोलो तब तक
कहा ना जाए जब तक बोलने के लिए
हमने अपने कान मकई के भुट्टों जैसे बड़े कर लिए

जब उन्‍होंने हमें सब कुछ खा लेने के लिए मज़बूर किया
हम उनके तमाम दुखों को निगल गईं

जब उन्‍होंने हमें दीवार पर चित्रकारी करने के लिए पीटा
हमने परदों के पीछे वाले दरवाज़े रंग डाले

पीढि़यों तक वे ऐसे ही
हमें बेतरह बचाने की कामना के साथ
जीवन गुज़ारते रहे
बिना यह जाने कि कैसे बचाना है

और इसी सबके बीच हमने
असामान्‍य जगहों में तलाश लिया प्रेम
अपनी देह और चेहरों के उजाड़ गिरजों में
उनके लंबे तिरछे मुड़े हुए चेहरों में.