भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रतिकांति के पैर / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:23, 7 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

सपना ही रह गया
कि फंदा पहनायेंगे
बुरे शरीफज़ादों को
वे लकीरें निकालेंगे नाक के साथ
हिसाब देंगे लोगों के आगे।

प्रतिक्रांति के पैर
हमारी छातियों पर आ टिके
ज़लील होना ही हमारा
जैसे एकमात्र
पड़ाव रह गया।