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"प्रेम-4 / अपर्णा भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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14:42, 17 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

कितना विचित्र है प्रेम
जिसमें रुकना होता है समय को
रचने के लिए नया युग

समय सुनता है छैनियों की नरम देह की आवाजें
जिनमें तराशने के संस्कार पीट रहे होते हैं हथौड़ियाँ ...अनगढ़ पत्थरों पर
वल्लरियों के गुल्म चढ़ने लगते हैं मंदिर की पीली लाटों पर
और बुद्ध की आँखें अचरज से देख रही होती हैं अपने चारों ओर लिपटे वलय को
सुजाता ले आती है खीर
प्रेम बोधि हो जाता है.