भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रेम-3 / निवेदिता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					| Gayatri Gupta  (चर्चा | योगदान)   ('{{KKGlobal}}	 {{KKRachna |रचनाकार=निवेदिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया) | 
| (कोई अंतर नहीं) | 
14:58, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
आसमान स्याह है 
चाँद डूबता सा
ख्वाबीद-ख्वाहिशे जगने लगी
फस्ल-ए-गुल आया भी तो क्या
वस्ल के दिन की आरजू ही रहीं.
 
	
	

