भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी-अपनी जगह / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:24, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
देर तक शुक्र मनाते
अपने आंगन में बेखौफ उतरे
अष्टावक्र प्रेम को निहारते संवारते
जीवन का आधा वक्त गुजरा
कई कोणों से सुशोभित प्रेम
अपने सीधे रूप में मेरे नजदीक क्योंकर आता
हर उस सीधेपन से एतराज रहा था मुझे
जो कहीं से भी मुड़ने से परहेजी था
प्रेम के इस सोलवें सावन पर
कई बार सात फेरे लेने का मन हुआ
पर ये सात फेरों वाला मामला तो
सीधेपन की ऊँची हद तक सीधा था
सो मैं रही अपनी कमान में महफूज
और मेरा अष्टावक्र प्रेम अपने आठ कोणों में विभाजित