भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन भीतर जीवन / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:11, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

पौधे अपनी टहनियों के बल खड़े हो
धरती का खनिज सोख रहे थे
प्रेम, आत्मा के बूते
मुखर हो रहा था
डोल्फिन पानी के भीतर-बाहर
आ-जा कर प्राणवायु को लपकते दोहरी हुई जा रही थी
सीधे-सीधे कोई नहीं कह पा रहा था
उसे जीवन 'भीतर जीवन' की तलाश है