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"नयी बहू , मेहंदी भरे हाथ, सांप सीढ़ी और समय / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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14:06, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
महेंदी लगे हाथों ने
नयी-नवेली-नकोर बहू
को इतनी आज़ादी तो दी हाथों की मेहंदी फीकी होने तक
वह घर से कामों में ना लगे
इस खाली समय में नयी बहू
अपने छोटे देवर और ननद के साथ
खेल रही है सांप-सीढ़ी का खेल
अपनी पतली-पतली ऊँगलियों से वह गिट्टी फेंकती है
बच्चे अपनी भाभी के दोनों हाथों में धुर ऊपर तक लगी हुई है मेहंदी
भरी कलाईयों पर मोहित हो उठे हैं
समय भी वहीं रुक कर इस खेल में खो गया है
कुछ समय तक डूब कर वह
चल देगा आगे तब इसी बहू के फटी बिवाईओं वाले पांवों, सूखे बालों और सख्त हो चुके हाथों की तरफ देखने की उसे मोहलत नहीं होगी
फिलवक़्त समय की निष्ठुरता को नज़रअंदाज़ कर नयी बहु
मगन है खेल में
और इस कविता ने भी बहू को जीतते देख हलकी सीटी बजाई है