भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धरती पर पहले पहल / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:31, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

एक तरफ की रोटी को
थोड़ा कच्चा रख
दूसरी तरफ को
थोड़ा ज्यादा पकाकर फूली हुई
रोटी को बना कर एक स्त्री
अनजानें में ही संसार की
पहली गृहस्थन बन गई होगी


जिस प्राणी की आँखों में पहले-पहल नग्न शिला देख
गुलाबी डोरों नें जन्म लिया होगा
उसे पुरुष का नाम दे दिया होगा

जो अपने मन - भीतर उठती सीली भाप
में यदा-कदा सुलग उठा हो
उसने ही आगे चल कर
प्रेम की राह पकड़ ली होगी

धरती ने
मनुष्यो की इन कोमल गतिविधियों पर खुश होते हुए
अपने सभी बन्द किनारे खोल दिये होंगें

फिर एक दिन जब पुरुष,
स्त्री को चारदिवारी भीतर रहने को कह
अपने लिये यायावरी निश्चित कर
बाहर खुले आसमान में निकल आया होगा
तब धरती चाह कर भी अपने खुले हुए
किनारों को समेट ना पाई होगी....